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________________ अनुमोदनीय प्रयास साध्वी श्री मोक्षरत्ना श्रीजी ने आचारदिनकर जैसे कठिन किंतु महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का अनुवाद किया है, यह जानकर प्रसन्नता हो रही है । उनके द्वारा प्रेषित प्रथमभाग जो गृहस्थ जीवन के संस्कारों से सम्बन्धित है, उसे देखा । अब उसका दूसरा भाग, जो साधु जीवन के विधि-विधानों से सम्बन्धित है, भी छप रहा है यह जानकर प्रमोद हो रहा है। जिनशासन की सेवा परमात्मा की सेवा है और ज्ञानाराधना मोक्षमार्ग की साधना का ही अंग है। साध्वी जी के इस पुरुषार्थ से जैन गृहस्थ और साधु-साध्वीगण हमारे पूर्वाचार्यों द्वारा प्रणीत विधि-विधानों से परिचित हो और साधना-आराधना में प्रगति करे, यही शुभ भावना है। साध्वी मोक्षरत्ना श्रीजी विचक्षण मण्डल की ही सदस्या है, उनकी यह ज्ञानाभिरूचि निरन्तर वृद्धिगत होती रहे, यही शुभ- भावना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only विचक्षणचरणरेणु मणिप्रभा श्री www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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