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________________ आचारदिनकर (भाग - २) 176 विहार करे । जैनमुनि जीवन के विधि-विधान अनुकल शकुनों को जानने के लिए “बसंतराजशकुनार्णव" नामक ग्रन्थ देखें । चातुर्मास के बाद पूर्णिमा के दिन विहार करना वर्जित है, किन्तु उससे पूर्व त्रयोदशी के दिन भी विहार करने की अनुमति गीतार्थों ने दी है। श्रावकजन, क्षेत्रदेवता, राजा, सुसाधुजन एवं गुरु की अनुज्ञा लेकर साधु दिन में विहार करे, रात्रि में विहार न करे । एक मास के लिए भी साधु जहाँ रहता है, वहाँ छः जनों की अनुज्ञा लेता है । वे छः जन इस प्रकार हैं इन्द्र २. क्षेत्रदेवता ३. राजा ४. साधु ५. नगर के मुखिया एवं १. ६. गुरु । जैसा कि आगम में कहा गया है देवेन्द्र, राजा, गृहपति, सागारिक (वसति का मालिक ) एवं स्वधर्मी ( साधु-साध्वी ) इन पाँचों से सम्बन्धित पाँच अवग्रह होते हैं। मुनि को इनके अवग्रह में इनकी अनुमति लेकर ही रहना कल्पता है। गुरु के आयुष्यपर्यन्त गुरु द्वारा चारों दिशाओं में अवग्रहित भूमि गुरु का अवग्रह होता है, उसमें रहने के लिए उनकी अनुज्ञा लें। मुनि जहाँ भी रहे, वहाँ इन छः जनों से अनुज्ञा ले, अन्यथा इनकी आज्ञा के बिना स्थिति या प्रस्थिति होने से मुनि के अदत्तादान व्रत का भंग होता है - यह हेमन्तऋतु की चर्या I - शिशिरऋतु में भी मुनि को हेमन्तऋतु की भाँति ही चर्या करनी चाहिए। श्लेष्म (बलगम) को किंचित मात्र भी निगले नही और न अधिक मात्रा में जल पीए । यह शिशिर ऋतु की चर्या है । बसंतऋतु में मुनि भूषा का सर्वथा त्याग करे। नीरस आहार ग्रहण करे और अच्छे वस्त्र धारण न करे। मुनि हमेशा ही ब्रह्मचर्यव्रत से युक्त होते हैं, फिर भी विशेष रूप से बसंतऋतु में विशेष सावधानी रखे, क्योंकि यह समय ही कामभोग की स्मृति का कारक होता है । विशुद्ध भिक्षा करते हुए प्रतिदिन विहार करे। प्रायः स्त्री एवं पशुओं से रहित निर्जन वन में रहे। अभ्यास या अध्ययनशील मुनि को चित्त समाधि हेतु सुवासित स्थान यथा उद्यान आदि में रहना चाहिए | अस्वाध्याय के निवारण के लिए कल्पतर्पण की विधि करे । चैत्रशुक्ल पंचमी से लेकर वैशाख कृष्ण प्रतिपदा तक भूमण्डल पर Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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