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________________ 165 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान साधुओं का एक उपकरण दण्डप्रोंछन होता है। मयूर के पंखों से निर्मित या मुंज से निर्मित पिच्छिका दण्ड से बंधी हुई होती है। धर्मोपकरण आदि अन्य परम्परा से भेद करने के उद्देश्य से भी रखे जाते हैं। इस प्रकार के उपकरणों से युक्त साधु और साध्वी संयम का पालन करते हैं। चर्मादि परिमाण को प्रवचनादि से, अर्थात् आगम ग्रन्थों से ज्ञात कर सकते हैं। साधु-साध्वी की दिनचर्या - साधु और साध्वी रात्रि के अन्तिम प्रहर में परमेष्ठी मंत्र पढ़कर संस्तारक से उठें। फिर दण्डप्रोंछन (दण्डासन) से शय्या की प्रतिलेखना करके तथा पैरों की प्रमार्जना करके प्रम्नवणभूमि तक जाएं। फिर प्रसवणभूमि को दण्डासन से प्रतिलेखित करके शनैः-शनैः मूत्र का त्याग करे। फिर उसी विधि से वसति के बाहर जाकर संध्या के समय प्रमार्जित स्थंडिल भूमि पर परटें। तत्पश्चात् पुनः उसी प्रकार संस्तारक के पास आकर प्रतिलेखन करके संस्तारक को लपेट दें, फिर संध्या के समय प्रतिलेखित किए गए लकड़ी के आसन पर या पादपोंछनक को बिछाकर उस पर स्थित हो ईर्यापथिकी (आवागमन की क्रिया) के पापों की आलोचना करे और शक्रस्तव का पाठ करे। फिर रात्रि में कोई दुःस्वप्न आया हो, तो उसके प्रायश्चित्त के लिए कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग पूर्ण करके चतुर्विंशतिस्तव बोलें। उसके बाद "इच्छामि पडिक्कमिउं पगाम सिज्झाए " से लेकर “राईयो अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं" तक का पाठ बोलें। फिर स्वाध्याय-पाठ, नमस्कार-जाप एवं धीमे-धीमे स्वर से अन्य विद्या का अभ्यास करते हुए रात्रि व्यतीत करे। फिर रात्रि की एक घटिका शेष रहने पर रात्रि प्रतिक्रमण करे। प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान आदि की विधि आवश्यक उदय में वर्णित है। फिर सूर्योदय होने पर श्रीमद् इन्द्रभूति गणधर स्तुति के पाठ से अंग की, उपधि की एवं वसति की प्रतिलेखना करे। तत्पश्चात् स्वाध्याय करे। फिर धर्म का आख्यान करे, शिष्य साधु एवं श्रावक-श्राविकाओं को पाठ दें, अर्थात् पढ़ाएं, स्वयं भी पढ़ें तथा धर्मशास्त्र लिखने का कार्य करे। फिर दिन का प्रथम प्रहर व्यतीत होने पर पोरसी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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