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________________ शाजापुर आने के बाद डॉ. सागरमलजी जैन सा. ने एक ही प्रश्न किया, म.सा. समय लेकर आए हो कि बस उपाधि प्राप्त करनी है। हमने कहाँ कि हम तो सबको छोड़कर आपकी निश्रा में आए है। आप जैसा निर्देश करेंगे, वही करेंगे। उन्होंने साध्वी मोक्षरत्ना श्री जी को जो सहयोग एवं मार्गदर्शन दिया है, वह स्तुत्य है। यदि उन्होंने आचारदिनकर के अनुवाद करने का कार्य हमारे हाथ में नहीं दिया होता तो शायद यह रत्न ग्रन्थ आप लोगो के समक्ष नहीं होता। इस सम्बन्ध में अधिक क्या कहें - यह महान् कार्य उनके एंव साध्वी जी के अथक श्रम का परिणाम है। इस अवसर पर पूज्य गुरुवर्याओ श्री समतामूर्ति प.पू. विचक्षण श्री जी म.सा. एवं आगम रश्मि प.पू. तिलक श्री जी म.सा. की याद आए बिना नहीं रहती। यदि आज वे होते तो इस कार्य को देखकर अतिप्रसन्न होते। उनके गुणों को लिखने में मेरी लेखनी समर्थ नहीं है। विश्व के उदयांचल पर विराट् व्यक्तित्व संपन्न दिव्यात्माएँ कभी-कभी ही उदित होती हैं। किन्तु उनके ज्ञान और चारित्र का भव्य प्रकाश चारों दिशाओं को आलोकित करता रहता है। आप गुरुवर्याओ का संपूर्ण जीवन ही त्याग, तप एवं संयम की सौरभ से ओत-प्रोत था, जैसे पानी की प्रत्येक बूंद प्यास बुझाने में सक्षम है, वैसे ही आप गुरुवर्याओ श्री के जीवन का एक एक क्षण अज्ञानान्धकार में भटकने वाले समाज के लिए प्रकाश पुंज है। वे मेरे जीवन की शिल्पी रही हैं। ऐसी महान गुरुवर्याओं का पार्थिव शरीर आज हमारे बीच नहीं है, परन्तु अपनी ज्ञान ज्योति के द्वारा वे आज भी हमे आलोकित कर रही उन ज्ञान-पुंज चारित्र-आत्माओं के चरणों में भावभरी हार्दिक श्रद्धांजली के साथ-साथ यह कृति भी सादर समर्पित है। विचक्षण चरणरज हर्षयशाश्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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