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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 146 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान // उनतीसवाँ उदय ।। महत्तरापदस्थापना-विधि महत्तरा पद के अयोग्य साध्वी के लक्षण बताते हुए कहा गया "कुरूपा, विकलांग, हीन कुल में उत्पन्न, मूर्ख, दुष्ट, दुराचारिणी, रोगी, कठोर बोलने वाली, साध्वाचार से अनभिज्ञ, अशुभ मुहूर्त में उत्पन्न, खराब लक्षणों वाली, आचार से रहित, अर्थात् चारित्र से भ्रष्ट साध्वी महत्तरा पद के लिए उपयुक्त नहीं है।" महत्तरापद के योग्य साध्वी के लक्षण बताते हुए कहा गया है__ "सिद्धान्त को जानने वाली, शान्तचित्त वाली, कृतयोगिनी, उत्तमकुल वाली, चौंसठ कलाओं की जानकार, सभी विद्याओं में प्रवीण, प्रमाण, लक्षण आदि का ज्ञान रखने वाली, मधुरभाषिणी, उदार, शुद्ध शील वाली, पाँचों इन्द्रियों को जीतने वाली, धर्मोपदेश में निपुण, लब्धि, तत्त्वज्ञा, बुद्धिशालिनी, गच्छ के प्रति अनुराग रखने वाली, नीति में निपुण, सद्गुणों से युक्त, विहार आदि करने में समर्थ, पंचाचार का पालन करने वाली - इस प्रकार की साध्वी महत्तरा पद के योग्य होती है।" ये महत्तरापद को धारण करने वाली साध्वी के लक्षण हैं। इस पद के प्रदान के समय भी शुभ नक्षत्र, तिथि, वार एवं लग्न आदि आचार्य पदस्थापना-विधि के समान ही देखे जाते हैं। इस अवसर पर अमारिघोषणा, वेदी बनाना, ज्वारारोपण, आरती आदि क्रियाएँ भी आचार्य पदस्थापन-विधि के समान ही श्रावकों द्वारा की जाती है। संघपूजा, महोत्सव आदि सभी कार्य भी आचार्य पदस्थापना-विधि के सदृश ही किए जाते है। प्रवर्तिनीपद के योग्य लोच की हुई साध्वी लग्न-दिन के आने पर प्रभातकाल का ग्रहण करे और स्वाध्याय की प्रस्थापना करे। तत्पश्चात् वह साध्वी चैत्य में या उपाश्रय में समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दे। फिर व्रतिनी गुरु के समक्ष खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे - "हे भगवन् ! आपकी इच्छा हो, तो आप मुझे चंदना आदि पूर्व आर्याओं द्वारा सेवित महत्तरापद की अनुज्ञा हेतु नंदीक्रिया करने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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