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________________ 144 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान कायोत्सर्ग करती हूँ"- ऐसा कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में चतुर्विंशतिस्तव बोले। फिर प्रवर्तिनी मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके द्वादशावर्त्तपूर्वक वन्दन करे। तत्पश्चात् खमासमणासूत्र से वंदन करके कहे - “आपकी इच्छा हो, तो आप मुझे गच्छ की साध्वियों के प्रवर्तन की अनुज्ञा दें।" गुरु कहे - "मैं अनुज्ञा देता हूँ।" फिर खमासमणासूत्रपूर्वक छह बार वन्दन एवं गुरु-शिष्य का वार्तालाप रूप, अर्थात् अनुज्ञा देने और लेने की विधि पूर्ववत् करे। आचार्य पद के समान ही उपयुक्त लग्नवेला के आने पर गुरु गन्ध, पुष्प एवं अक्षत द्वारा पूजित प्रवर्तिनी के दाएँ कर्ण में तीन बार षोडशाक्षरी परमेष्ठी विद्या दे और पूजन के लिए अठारह वलय वाला परमेष्ठी मंत्र का चक्रपट दे। फिर एक बार लघुनंदी का पाठ करे, चतुर्विध संघ को वासक्षेप दे। सभी प्रवर्तिनी के सिर पर वासक्षेप एवं अक्षत डालें। तत्पश्चात् गुरु दोहरे आसन पर बैठ अनुज्ञा दे। जैसे - “साध्वियों को वाचना देने की तथा उनके प्रवर्तन की मैं अनुज्ञा देता हूँ। धर्म उद्देश देना, साधुओं की उपधि-क्रिया करना और उपधि-ग्रहण करना, साधु-साध्वियों को शिक्षा देना, श्रावक-श्राविकाओं को तप की अनुज्ञा देना - ये सब कार्य, हे वत्स ! तुम्हारे द्वारा करणीय हैं।" आचार्य प्रवर्तिनी को इन कार्यों की आज्ञा प्रदान करते हैं। अब जिन कार्यों का निषेध हैं, वह बताए जा रहे हैं - हे साध्वीवर्या ! “साध्वियों को बड़ी दीक्षा देना, उन्हें वंदन करना, कम्बल पर बैठना तथा व्रत की अनुज्ञा देना इत्यादि कार्य तुम्हारी जैसी विनीत साध्वी के लिए वर्जनीय हैं। आचार्य और महत्तरा के वचनों का उल्लंघन मत करना, अर्थात् उनका अपमान मत करना।" तत्पश्चात् अन्य साध्वियाँ तथा श्रावक-श्राविकाएँ उसको वन्दन करते हैं, किन्तु महत्तरापद आरोपण-विधि की तरह श्राविकाएँ प्रवर्तिनी को द्वादशावर्त्तवंदन नहीं करती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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