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आचारदिनकर (भाग-२) 128 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
// चौबीसवाँ उदय // उपाध्याय पदस्थापन-विधि
उपाध्याय पदस्थापन की विधि आचार्य पदस्थापना-विधि की भाँति ही है।
यहाँ इतना विशेष है कि उपाध्याय पदस्थापना में अक्षमुष्टि, वलय आदि नहीं होते है और गुरु-वन्दन भी नहीं करते हैं। कालग्रहण की विधि, बृहत्नन्दी-पाठ और यव आदि का भी वपन नहीं किया जाता है, किन्तु तीन बार लघुनंदी का पाठ बोला जाता है। चौकोर, अर्थात् चार द्वार वाला वर्द्धमान विद्यापट प्रदान करते हैं तथा सम्पूर्ण वर्द्धमान विद्या का उद्देश देते हैं। साधु की उपाध्याय पदस्थापना की शेष विधि प्राचीन शास्त्रों में वर्णित आचार्य पदस्थापन की विधि के समान ही है।
इस प्रकार आचार्य श्रीवर्द्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में यतिधर्म के उत्तरायण में उपाध्याय पदस्थापन कीर्तन नामक यह चौबीसवाँ उदय समाप्त होता है।
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