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________________ आचारदिनकर (भाग- - २) - 125 // तेईसवाँ उदय // वाचनानुज्ञा-विधि जैनमुनि जीवन के विधि-विधान वाचना- अनुज्ञा द्वारा वाचनाचार्य पद पर स्थापना की विधि इस प्रकार से है 'कृतयोगी', अर्थात् जिसने योग किया हुआ हो, गीतार्थ हो, वाचना देने में समर्थ हो और अध्यापक के सभी गुणों से युक्त हो, ऐसे लक्षणों वाला मुनि वाचनाचार्य पद के योग्य होता है । आचार्य अपने शिष्य को निम्न विधि से वाचनाचार्य के पद पर आरूढ़ करते हैं । पदस्थापना का योग होने पर आचार्य शुभ तिथि, वार, नक्षत्र एवं लग्न में विशिष्ट वेश को धारण किए हुए गुरु अपने शिष्य को, जिसने लोच एवं आयम्बिल किया हुआ है, अपने पास बुलाए । तत्पश्चात् उपस्थापन की भाँति समवसरण आदि की रचना कराएं। फिर शिष्य से समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दिलवाए । तत्पश्चात् शिष्य गुरु के समक्ष खमासमणासूत्र - पूर्वक वंदन करके कहे -“यदि आपकी इच्छा हो, तो आप वाचना की अनुज्ञा हेतु एवं नंदीविधि करने के लिए मुझ पर वासक्षेप करे एवं चैत्यवंदन कराएं।" फिर दोनों ही पूर्व की भाँति वर्द्धमानस्तुति द्वारा चैत्यवंदन करे । श्रुतदेवता, शान्तिदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता, शासनदेवता, वैयावृत्त्यकरदेवता का कायोत्सर्ग करे एवं पूर्ववत् स्तुति करे । फिर शक्रस्तव का पाठ करे । तत्पश्चात् अर्हणादिस्तोत्र एवं “जयवीयराय जगगुरु " सूत्र की गाथा बोलें । मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके गुरु को द्वादशावर्त्तपूर्वक वन्दन करे। फिर शिष्य खमासमणासूत्र पूर्वक वंदन करके कहे - " आप अपनी इच्छानुसार मुझे वाचना देने, तप-विधान कराने एवं दिशा की अनुज्ञा की अनुमति (आदेश) दें।" गुरु कहे "मैं अनुमति (आदेश) देता हूँ ।" शेष छः बार खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करना आदि सभी विधि-विधान पूर्ववत् करे । उसके बाद गुरु For Private & Personal Use Only - ' दिशा की अनुज्ञा का तात्पर्य विहार की दिशा ही होना चाहिए । और शिष्य " वाचना - दान, तप की अनुमति एवं दिशा की अनुज्ञा की अनुमति (आदेश) देने एवं ग्रहण करने के लिए मैं कायोत्सर्ग करता Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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