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आचारदिनकर (भाग-२)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे ।
इस प्रकार निरयावलिका श्रुतस्कन्ध के योग सात दिन में पूर्ण होते हैं तथा दो नंदी होती हैं । यह कालिक - आगाढ़योग है। इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार है :
अन्तकृद्दशांग आदि पाँच अंगों से प्रतिबद्ध निरयावलिका के श्रुतस्कन्ध के योग में काल - ७, दिन- ७, नंदी - २
१ श्रु.उ.नं.
२
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२
आ.-५, अं.-५
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काल
वर्ग
अध्ययन
काउसग्ग
काल
वर्ग
अध्ययन
काउसग्ग
आ. - ५,
अं. - ५
१०
४
४
आ. - ५, अं.-५
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५
५
आ. - ६, अं.-६
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श्रु. स.
०
३
३
आ. - ५, अं.-५
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७
श्रु. अ. नं.
०
आचारांग के उपांग औपपातिक उत्कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल किए जाते हैं ।
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सूत्रकृतांग के उपांग राजप्रश्नीय उत्कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल किए जाते हैं ।
स्थानांग के उपांग जीवाजीवाभिगम उत्कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल किए जाते हैं ।
समवायांग के उपांग प्रज्ञापना उत्कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल किए जाते हैं ।
भगवती-अंग के उपांग सूर्यप्रज्ञप्ति कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल एवं तीन कालग्रहण किए जाते हैं। ज्ञाताधर्मकथांग के उपांग जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति कालिकसूत्र के
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