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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 101 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे । इस प्रकार निरयावलिका श्रुतस्कन्ध के योग सात दिन में पूर्ण होते हैं तथा दो नंदी होती हैं । यह कालिक - आगाढ़योग है। इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार है : अन्तकृद्दशांग आदि पाँच अंगों से प्रतिबद्ध निरयावलिका के श्रुतस्कन्ध के योग में काल - ७, दिन- ७, नंदी - २ १ श्रु.उ.नं. २ 9 २ आ.-५, अं.-५ ६ काल वर्ग अध्ययन काउसग्ग काल वर्ग अध्ययन काउसग्ग आ. - ५, अं. - ५ १० ४ ४ आ. - ५, अं.-५ € ५ ५ आ. - ६, अं.-६ ६ Jain Education International ६ श्रु. स. ० ३ ३ आ. - ५, अं.-५ € 9 ७ श्रु. अ. नं. ० आचारांग के उपांग औपपातिक उत्कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल किए जाते हैं । For Private & Personal Use Only 9 सूत्रकृतांग के उपांग राजप्रश्नीय उत्कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल किए जाते हैं । स्थानांग के उपांग जीवाजीवाभिगम उत्कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल किए जाते हैं । समवायांग के उपांग प्रज्ञापना उत्कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल किए जाते हैं । भगवती-अंग के उपांग सूर्यप्रज्ञप्ति कालिकसूत्र के योग में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयम्बिल एवं तीन कालग्रहण किए जाते हैं। ज्ञाताधर्मकथांग के उपांग जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति कालिकसूत्र के www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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