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________________ !! आशीर्वचन... अभिनन्दन... अनुमोदन !! गौरव की प्रतीक जैनसंस्कृति के संस्कारों को वर्णित एवं संरक्षित करने में जिन व्यक्तियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान रहा, उन सबको मैं शिरसा प्रणाम करती हूँ । जैन धर्म मूलतः एक निवृत्तिप्रधान धर्म है। इसके दो महत्त्वपूर्ण सोपान है- सागारधर्म तथा अनागारधर्म । धर्म जन्म-जन्मांतरों से उपजे अविद्या जनित संस्कारों के प्रभाव से मुक्ति प्राप्त नहीं कर पाना मानव की एक सबसे बड़ी समस्या है। इसके लिए मनुष्य के समक्ष अपने जीवन का प्रयोजन स्पष्ट होना चाहिए, साथ ही उस प्रयोजन की सिद्धि के लिए प्रयत्न भी होना चाहिए । पुरुषार्थ की सफलता के लिए आचार-विचार एवं व्यवहार के परिष्कारित होने की आवश्यकता है। इसमें संस्कारों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । संस्कार शब्द का अभिप्राय धार्मिक क्रियाओं तथा व्यक्ति के दैहिक, मानसिक और बौद्धिक व्यापार के परिष्कार के लिए किये जाने वाले अनुष्ठानों से है । जिनसे सुसंस्कृत होकर व्यक्ति समाज का पूर्ण विकसित सदस्य हो सके । शास्त्रों में सागार तथा अनागार धर्म की आचार संहिता को अत्यन्त मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है । अनागारधर्म अर्थात् मुनिवृत्ति के लिए गृहस्थ जीवन के प्रति राग एवं मोह के त्याग के साथ-साथ सांसारिक प्रपंचों के प्रति उदासीन होना आवश्यक है। आशय यह है कि प्रव्रज्या ग्रहण करने से पूर्व सांसारिक विरक्ति का होना नितान्त महत्त्वपूर्ण है । प्रव्रज्या ग्रहण करने के उपरान्त ही मुनिवृत्ति या साधुजीवन का प्रारम्भ होता है । मुनिवृत्ति हेतु सद्-संस्कारों का होना आवश्यक है । संस्कार वह धार्मिक अनुष्ठान है, जो व्यक्ति को योग्य बनाता है, उसके जीवन को सार्थक करता है, गुणों का आधान करता है, दोषों को दूर करता हैं तथा जो शरीर के साथ-साथ आत्मा को भी उन्नत करता हैं । इस प्रकार संस्कार का अर्थ व्यक्ति के बाह्य परिष्कार के साथ-साथ आभ्यन्तर परिष्कार करना भी है । संस्कारों पर आधारित आचारदिनकर में १२५०० श्लोक संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में निबद्ध है। जिसमें गृहस्थ एवं साधु के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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