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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 94 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान पुनः यहाँ प्रथम वर्ग के आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दसों अध्ययनों के उद्देश की क्रिया करे। तत्पश्चात् प्रथम वर्ग तथा उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दसों अध्ययनों के समुद्देश की तथा उसके बाद उनके अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही ग्यारह बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, ग्यारह बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, ग्यारह बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे एवं ग्यारह बार कायोत्सर्ग करे। द्वितीय दिन :- दूसरे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया द्वितीय वर्ग तथा उसके आदि के सात एवं अन्त के छः - ऐसे तेरह अध्ययनों के वाचना के उद्देश्य से की जाती है। पुनः द्वितीय वर्ग एवं उसके आदि के सात एवं अन्त के छः - ऐसे तेरह अध्ययनों के समुद्देश की तथा उसके बाद उनके अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। तृतीय दिन :- तीसरे दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया तृतीय वर्ग तथा उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दसों अध्ययनों के वांचन के उद्देश्य से की जाती है। पुनः तृतीय वर्ग एवं उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दसों अध्ययनों के समुद्देश की तथा उसके बाद उसके अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। चौथे दिन :- चौथे दिन योगवाही आयम्बिल-तप तथा एक काल का ग्रहण करे एवं श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। पाँचवें दिन :- पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, एक काल का ग्रहण एवं नंदीक्रिया करे तथा श्रुतस्कन्ध के अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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