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________________ पूर्ववत् स एवं अनुज्ञा तथा चौदहवे आचारदिनकर (भाग-२) 76 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। सत्रहवें दिन - सत्रहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा चौदहवें यदतीत नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। अठारहवें दिन - अठारहवें दिन योगवाही नीवि-तप करे एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पन्द्रहवें गाथा नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। उन्नीसवें दिन - उन्नीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सोलहवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। बीसवें दिन - बीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रथम श्रुतस्कन्ध के अनुज्ञा की नंदीक्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ दो-दो बार करे। इस प्रकार सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के योग बीस दिन के होते हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध के यंत्र का न्यास इस प्रकार है : सूत्रकृतांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध में : काल-२०, दिन-२०, नंदी-२, _ अंग-दूसरा काल | १ | २ | ३ | ४| ५ | ६ । ७ ८ ६ १० २ | २| ३ | ३ | अध्ययन ७ " अ.१ । उद्देशक | १/२ ३/४ १/२ ३ १/२ | ३/४ १/२ १/२ | १/२ ३/४ | १/२ | १/२ ३ /४ | १/२ | १/२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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