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________________ 74 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान की विधि भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे। चतुर्थ दिन - चौथे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय अध्ययन के तीसरे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के साथ-साथ द्वितीय अध्ययन के अनुज्ञा की भी विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ चार-चार बार करे। पाँचवें दिन - पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया तृतीय उपसर्गपरिज्ञा नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है, साथ ही इसमें तृतीय अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। छटें दिन - छठे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तृतीय अध्ययन के तीसरे एवं चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। - सातवें दिन - सातवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया चतुर्थ स्त्रीपरिज्ञा नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है। साथ ही इसमें चतुर्थ अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। __ आठवें दिन - आठवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया पाँचवें निरयविवृत्ति नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है। साथ ही इसमें पंचम अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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