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________________ आपसे तीन वर्ष छोटे थे फिर भी आप दोनों में गहरी दोस्ती थी । यद्यपि आप नियमित अध्ययन तो नहीं कर सके, फिर भी अपनी प्रतिभा के बल पर आपने उस परीक्षा में उच्च द्वितीय श्रेणी के अंक प्राप्त किये। अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने के परिणामस्वरूप आप के मन में अध्ययन की भावना पुनः तीव्र हो गयी । इसी अवधि में व्यवसाय के क्षेत्र में भी आपने अच्छी सफलता और कीर्ति अर्जित की । पिता जी की प्रामाणिकता और अपने सौम्य व्यवहार के कारण आप ग्राहकों का मन मोह लिया करते थे। परिणामस्वरूप आपको व्यावसायिक क्षेत्र में अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई । अल्प वय में ही आपको शाजापुर नगर के सर्राफा एसोसियेशन का मंत्री बना दिया गया । पारिवारिक और व्यावसायिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए भी आपमें अध्ययन की रुचि सदैव जीवन्त रही । अतः आपने सन् 1957 में इण्टर कामर्स की परीक्षा दे ही दी और इस परीक्षा में भी उच्च द्वितीय श्रेणी के अंक प्राप्त किये। यह आपका सद्भाग्य ही कहा जायेगा कि चाहे व्यवसाय का क्षेत्र हो या अध्ययन का असफलता और निराशा का मुख आपने कभी नहीं देखा । किन्तु आगे अध्ययन का क्रम पुनः खण्डित हो गया, क्योंकि उस समय शाजापुर नगर में कोई महाविद्यालय नहीं था और बी. ए. की परीक्षा स्वाध्यायी छात्र के रूप में नहीं दी जा सकती थी । अतः एक बार पुनः आपको व्यवसाय के क्षेत्र में ही केन्द्रित होना पड़ा, किन्तु भाग्यवानों के लिए कहीं न कहीं कोई द्वार उद्घाटित हो ही जाता है । उस समय म. प्र. शासन ने यह नियम प्रसारित किया कि 25000 रु. की स्थायी राशि बैंक में जमा करके कोई भी संस्था महाविद्यालय का संचालन कर सकती है। अतः आपने तत्कालीन विधायक श्री प्रताप भाई से मिलकर एक महाविद्यालय खुलवाने का प्रयत्न किया और विभिन्न स्रोतों से धन राशि की व्यवस्था करके बालकृष्ण शर्मा नवीन महाविद्यालय की स्थापना की और स्वयं भी उसमें प्रवेश ले लिया । व्यावसायिक दायित्व से जुड़े होने के कारण आप अधिक नियमित नहीं रह सके, फिर भी बी. ए. परीक्षा में बैठने का अवसर तो प्राप्त हो ही गया । इस महाविद्यालय के माध्यम से सन् 1961 में बी. ए. की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस समय आप पर व्यावसायिक, पारिवारिक और सामाजिक दायित्व इतना अधिक था कि चाहकर भी अध्ययन के लिए आप अधिक समय नहीं दे पाते थे । अतः अंकों का प्रतिशत बहुत उत्साहजनक नहीं रहा तो भी शाजापुर से जो छात्र इस परीक्षा में बैठे थे उनमें आपके अंक सर्वाधिक थे। आपके तत्कालीन साथियों में श्री मनोहरलाल जैन एवं आपके ममेरे भाई रखबचन्द्र प्रमुख थे । 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001692
Book TitleSagarmal Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Samaj Shajapur MP
PublisherJain Samaj Shajapur MP
Publication Year1994
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size3 MB
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