SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12 नियति को कुछ और ही मंजूर था। पं. दलसुखभाई मालवणिया का आदेश था कि आप पार्श्वनाथ विद्याश्रम की चरमराती हुई स्थिति को सम्हालने के लिए वाराणसी जायें। आपके सामने एक कठिन समस्या थी, एक ओर स्थायित्वपूर्ण शासकीय सेवा तथा घर-परिवार और अपने लोगों के निकट रहने का सुख, तो दूसरी ओर घर-परिवार से दूर एक चरमराती हुई जैन विद्या संस्था को सम्भालने का प्रश्न। उस समय पार्श्वनाथ विद्याश्रम की प्रतिष्ठा तो थी, किन्तु उसकी आर्थिक स्थिति डाँवा-डोल थी। अतः कोई भी वहाँ रहना नहीं चाहता था। फिर भी एक जैन विद्या संस्थान के उद्धार का निश्चय लेकर आपने तत्कालीन संचालन समिति के अध्यक्ष श्री शादीलालजी जैन एवं कोषाध्यक्ष गुलाबचन्दजी जैन को आश्वासन दिया कि यदि आप लोग मेरी प्रति नियुक्ति का आदेश म.प्र. शासन से निकलवा सकें और संस्थान की अर्थ-व्यवस्था के सुधार हेतु प्रयत्न करें तो मैं विद्याश्रम आ जाऊंगा। तत्कालीन बंगाल के उपमुख्य मंत्री विजयसिंह नाहर के प्रयत्नों से आपकी प्रतिनियुक्ति के आदेश निकले और आपने 1979 में पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान में निदेशक का कार्यभार ग्रहण का लिया। विद्यानगरी काशी में आपके काशी आगमन से संस्थान को एक नव जीवन मिला और आपने अपने श्रम से विद्याश्रम को एक नये कीर्तिमान पर लाकर खड़ा कर दिया। पार्श्वनाथ विद्याश्रम में आपके आगमन ने जहाँ एक ओर विद्याश्रम की प्रगति को नवीन गति दी, वहीं दूसरी ओर आपको अपने अध्ययन के क्षेत्र में भी नवीन दिशायें मिली। विद्याश्रम को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय संस्कृति और इतिहास विभाग, कला इतिहास विभाग, हिन्दी विभाग, दर्शन विभाग, संस्कृत और पालि विभाग आदि में शोध छात्रों के पंजीयन की सुविधा मिली हुई है, अतः आपको इन विविध विषयों के शोध छात्र उपलब्ध हुए। शोध-छात्रों के मार्ग-दर्शन हेतु यह आवश्यक था कि निर्देशक स्वयं भी उन विषयों से परिचित हो, अतः आपने जैनधर्म-दर्शन के अलावा जैन कला,पुरातत्त्व और इतिहास का भी अध्ययन किया। प्रामाणिक शोधकार्य के लिए द्वितीय श्रेणी के ग्रन्थों से काम नहीं चलता है, मूल ग्रन्थों का अध्ययन आवश्यक होता है। आपने शोध छात्रों एवं जिज्ञासु विदेशी छात्रों के हेतु मूल ग्रन्थों के अध्ययन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001692
Book TitleSagarmal Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Samaj Shajapur MP
PublisherJain Samaj Shajapur MP
Publication Year1994
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy