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किन्तु आचारदिनकर के कर्ता वर्धमानसूरि इनसे भिन्न हैं। अपनी सम्पूर्ण वंश परम्परा का उल्लेख करते हुए उन्होंने अपने को खरतरगच्छ की रूद्रपल्ली शाखा के अभयदेवसूरी (तृतीय) का शिष्य बताया है। ग्रन्थ प्रशस्ति में उन्होंने जो अपनी गुरू परम्परा सूचित की है, वह इस प्रकार है :
आचार्य हरिभद्र देवचन्द्रसूरि नेमीचन्द्रसूरि उद्योतनसूरि वर्धमानसूरि
जिनेश्वरसूरि अभयदेवसूरि (प्रथम)
जिनवल्लभसूरि इसके पश्चात् जिनवल्लभ के शिष्य जिनशेखर से रूद्रपल्ली शाखा की स्थापना को बताते हुए, उसकी आचार्य परम्परा निम्न प्रकार से दी है :
जिनशेखरसूरि
पद्मचंद्रसूरि
विजयचंद्रसूरि अभयदेवसूरि (द्वितीय), (12वीं से 13वीं शती)
देवभद्गसूरि प्रभानंदसूरि (वि.सं. 1311) श्रीचंद्रसूरि (वि.सं. 1327)
जिनभद्रसूरि जगततिलकसूरि गुणचन्द्रसूरि (1415-21)
अभदेवसूरि (तृतीय)
जयानंदसूरि
वर्धमानसूरि (15वीं शती)
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