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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 135 __यह कहकर आगारसहित अनशन ग्रहण करे। फिर अन्तिम समय में आगाररहित अनशन ग्रहण करे। वह पाठ इस प्रकार है : "भवचरिमं निरागारं पच्चक्खामि सव्वं असणं सव्वं पाणं सव्वं खाइम सव्वं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं अइयं निंदामि पडिपुन्नं संवरेमि अणागयं पच्चक्खामि, अरिहंत सक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहूसक्खियं देवसक्खियं, अप्पसक्खियं वोसिरामि, जे में हुज्ज पमाओ इमस्स देहस्स इमाइ वेलाए आहारमुवहि देहं तिविहं, तिविहेणं वोसिरियं ।" ___गुरू एवं संघ -"संसार को भवपार करने वाले बनो - यह कहकर वासक्षेप अक्षत आदि ग्लान के ऊपर डालें। शान्ति हेतु "अट्टावयम्मिसहां" इत्यादि स्तुति का या "चवणं जम्मणभूमी" इत्यादि स्तव का पाठ करें। गुरू निरन्तर (सतत्) ग्लान के समक्ष त्रिभुवन चैत्य का व्याख्यान, अनित्यादि बारह भावनाओं का व्याख्यान, अनादिभवस्थिति का विवेचन एवं अनशन के फल का विवेचन करता रहे। संघ गीत, नृत्य आदि उत्सव करे। अब ग्लान जीने एवं मरने की इच्छा का त्याग करके समाधि में विशेष रूप से स्थित होता है। फिर अन्त समय आने पर ग्लान “सम्पूर्ण आहार, सम्पूर्ण देह एवं सम्पूर्ण उपधि का मैं त्याग करता हूँ"- यह कहता है। फिर अन्त में ग्लानसाधक पंचपरमेष्ठी मंत्र के स्मरण एवं श्रवणपूर्वक शरीर का त्याग करता है। अन्तिम संस्कार-विधि में यह अनशन की विधि मृतदेह विसर्जन-विधि में मृत्यु होने पर ग्लान को कुश की शय्या पर स्थापित करें। जन्म और मरण के समय भूमि पर सुलाना चाहिए - यह व्यवहार है। अब आयुष्यादि के सर्व दलिकों को भोगने पर तथा चेतनारूप जीव के जाने पर अजीव पुद्गलरूप उसके शरीर का, सनाथता के आख्यापन हेतु, उसके पुत्र आदि के द्वारा तीर्थ संस्कार की विधि की जाती हैं। वह इस प्रकार है - शिखा को छोड़कर ब्राह्मण के सम्पूर्ण सिर एवं दाढ़ी का मुण्डन करने के लिए कहा गया है, कुछ लोग क्षत्रिय एवं वैश्यों को भी ऐसा ही करने का कहते हैं। शव-संस्कार की विधि भी सब अपने-अपने वर्ण, जाति आदि के अनुसार करें। फिर अस्पृश्य एवं अन्त्य वर्ण वाले भी अपनी जाति के अनुसार विधि करें। सुगन्धित तेल आदि का लेपन कर शव को अच्छी तरह से सुगंधित द्रव्यों के पानी से स्नान कराएं। गन्ध एवं कुंकुम आदि का विलेपन करें। माला पहनाएं, अपने-अपने कुल के अनुसार वस्त्र, आभरण, श्रृंगारों से भूषित करें। शूद्र का सर्वथा मुण्डन न करें। फिर बनाई गई काष्ठ की शय्या, जो बिना पैरो वाली है और अच्छे वस्त्र से आच्छादित है - ऐसी उस शय्या पर शव को शय्या के उपकरण के साथ स्थापित करें। गृहस्थ की मृत्यु पंचक में होने पर मृत्यु के नक्षत्र के अनुसार कुश, सूत्रादि से नक्षत्र-पुत्र बनाना यति के समान ही हैं। कुशपुत्र गृहस्थ वेषधारी बनायें। वर्णानुसार उसके ऊपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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