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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 124 "विशदपुस्तकशस्तकरद्वयः प्रथितवेदतया प्रमदप्रदः । भगवतः स्नपनावसरे चिरं हरतु विघ्नभरं द्रुहिणो विभुः।। "ॐ ब्रह्मन् इह."- शेष पूर्वानुसार पढ़े। इस क्रम से दिक्पालों की पूजा करे। पश्चात् पुनः हाथ में पुष्पांजलि लेकर निम्न आर्या छंद पढ़े : "दिनकरहिमकरभूसुत शशिसुतबृहतीशकाव्यरवितनयाः । राहो केतो सक्षेत्रपाल जिनस्यार्चने भवत सन्निहिताः।" यह छन्द बोलकर ग्रहपीठ पर पुष्पांजलि अर्पण करे। फिर पूर्व आदि क्रम से सूर्य, शुक्र, मंगल, राहु, शनि, चन्द्र, बुध, बृहस्पति की स्थापना करे। नीचे केतु एवं ऊपर क्षेत्रपाल की स्थापना करे। फिर सूर्य की पूजा के लिए निम्न बसंततिलका छंद पढ़े :"विश्वप्रकाशकृतभव्यशुभावकाश। ध्वान्तप्रतानपरिपातनसद्विकाश।। आदित्य नित्यमिह तीर्थकराभिषेके। कल्याणपल्लवनमाकलय प्रयत्नात्।। "ॐ सूर्य इह."- शेष पूर्वानुसार बोले। शुक्र की पूजा के लिए निम्न मालिनी छंद पढ़े :"स्फटिक धवलशुद्धध्यानविघ्नस्तपाप। प्रमुदितदितिपुत्रोपास्यपादारविन्द ।। त्रिभुवनजनशश्वज्जन्तुजीवानुविद्य । प्रथय भगवतोऽर्चा शुक्र हे वीतविघ्नाम् ।। "ॐ शुक्र इह,"- शेष पूर्वानुसार बोले। मंगल की पूजा के लिए निम्न आर्या छंद पढ़े :"प्रबलबलमिलितबहुकुशललालनाललितकलितविघ्नहते । भौमजिनस्नपनेऽस्मिन् विघटय विघ्नागमं सर्वम् ।। "ऊँ मंगल इह."- शेष पूर्वानुसार पढ़े। राह की पूजा के लिए निम्न छंद बोले :"अस्तांहः सिंह संयुक्तरथ विक्रममंदिर। सिंहिकासुत पूजायामत्र सन्निहितो भव ।। "ऊँ राहो इह."- शेष पूर्वानुसार पढ़े। शनि की पूजा के लिए निम्न छंद बोले :"फलिनीदलनील लीलयान्तः स्थगितसमस्तवरिष्ठ विघ्नजात । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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