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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 116 "ऊँ अर्ह अर्हद्भक्ताष्टनवत्युत्तरशतं (एक सौ अट्ठानवे) देवजातयः सदेव्यः पूजां “प्रतीच्छन्तु सुपूजिताः सन्तु सानुग्रहाः सन्तु तुष्टिदाः सन्तु पुष्टिदाः सन्तु मांगल्यदाः सन्तु महोत्सवदाः सन्तु।"
यह मंत्र बोलकर जिनप्रतिमा के चरणों के आगे पुष्पांजलि चढ़ाए। फिर अंजलि के अग्रभाग में पुष्प लेकर अर्हत् मंत्र का स्मरण करके उन पुष्पों से जिनप्रतिमा की पूजा करे।
अर्हत् मंत्र इस प्रकार है -
“ॐ अर्ह नमो अरिहंताणं ऊँ अहँ नमो सयंसंबुद्धाणं, ऊँ अर्ह नमो पारगयाणं" -
यह त्रिपद मंत्र श्रीमत् अर्हन् भगवंतो के आगे नित्य स्मरण करे। यह मंत्र देवलोकादि सुख और मोक्ष को देने वाला एवं सर्व पापों का नाश करने वाला है। इतना विशेष है कि अपवित्र तथा उपयोगरहित पुरूष इस मंत्र का स्मरण एवं उच्चारण न करे तथा नास्तिक एवं मिथ्यादृष्टियों को भी न सुनाए।
इस अर्हत् मंत्र का एक सौ आठ बार या चौपन बार जाप करे। तत्पश्चात् दो पात्रों में नैवेद्य रखे।
फिर एक पात्र तथा जल को हथेली में ग्रहण करके निम्न मंत्र बोले"ॐ अर्ह-नानाषड्रसंसंपूर्ण नैवेद्य सर्वमुत्तमम् । जिनाग्रे ढौकितं सर्वसंपदे मम जायताम् ।।"
यह मंत्र बोलकर प्रथम पात्र में एकत्रित नैवेद्य पर हथेली भर जल का छिड़काव करे, अर्थात् सिंचन करे। पुनः हथेली में जल लेकर निम्न मंत्र द्वारा द्वितीय पात्र के नैवेद्य के ऊपर भी हथेली भर जल का छिड़काव करे। वह मंत्र इस प्रकार है -
"ऊँ सर्वे गणेशक्षेत्रपालाद्याः सर्वे ग्रहाः सर्वे दिक्पालाः सर्वेऽस्मत्वपूर्वजोद्भवादेवाः सर्वेऽष्टनवत्युत्तरशतं देवजातयः सदेव्योऽर्हद्भक्ताः अनेन नैवेद्येन सन्तर्पिताः सन्तु सानुग्रहाः सन्तु तुष्टिदाः सन्तु पुष्टिदाः सन्तु मांगल्यदाः सन्तु महोत्सवदाः सन्तु। यह परमात्मा की पूजा विधि है।
"यो जन्मकाले पुरूषोत्तमस्य सुमेरूश्रृंगे कृत मज्जनैश्च । देवैः प्रदत्तः कुसुमांजलिः स ददातु सर्वाणि समीहितानि ||1|| राज्याभिषेक समये त्रिदशाधिपेन छत्रध्वजांक तलयोः पदयोर्जिनस्य ।
क्षिप्तोऽतिभक्तिभरतः कुसुमांजलिर्यः स प्रीणयत्वनुदिनं सुधियांमनांसि ।।2।।
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