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________________ सादर समर्पण गृहस्थ जीवन में श्रद्धा, विनय, विवेक और क्रिया आवश्यक है। जीवन को सार्थक करने के लिये श्रावक ओर श्राविकाओं को संस्कारों के द्वारा अपने आपको सुसंस्कारित करना चाहिए। पूर्व भव में उपार्जित कुछ संस्कार व्यक्ति साथ में लाता है और कुछ संस्कार इस भव में संगति एवं शिक्षा के द्वारा उपार्जन करता है। अतः गर्भ में आने के साथ ही बालक में विशुद्ध संस्कार उत्पन्न हो इसलिए कुछ संस्कार विधियाँ की जाती है। प्रस्तुत पुस्तक में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक के गृहस्थ के सोलह संस्कारों का विवेचन है। मूल ग्रन्थ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर है। साध्वी मोक्षरत्ना श्री ने इसका सुन्दर और सुबोध भाषा में अनुवाद किया है।। __ आचारदिनकर ग्रन्थ के प्रणेता खरतर गच्छ के आचार्य वर्धमानसूरि जी ने गृहस्थ एवं साधु जीवन को सुघड़ बनाने के लिये इस ग्रन्थ को मूल दो भागों में विभाजित किया है। प्रथम भाग में गृहस्थ एवं साधु जीवन के सोलह-सोलह संस्कारों का उल्लेख है तथा दूसरे भाग में गृहस्थ एवं साधु दोनों के द्वारा किये जाने वाले आठ संस्कारों का उल्लेख किया है। जैसे प्रतिष्ठा-विधि, प्रायश्चित्त-विधि, आवश्यक-विधि आदि। यह संपूर्ण ग्रंथ बारह हजार पाँच सौ श्लोको में निबद्ध है। आचारदिनकर ग्रंथ का अभी तक सम्पूर्ण अनुवाद हुआ ही नहीं है। यह पहली बार अनुवादित रूप में प्रकाशित होने जा रहा है। जन हितार्थ साध्वी जी ने जो अथक पुरूषार्थ किया है, वह वास्तव में प्रशंसनीय विशेष रूप से मैं जब भी पूज्य श्री पीयूषसागर जी म.सा. से मिलती तब वे एक ही बात कहते कि मोक्षरत्नाश्री जी को अच्छी तरह पढ़ाओ ताकि जिन शासन की अच्छी सेवा कर सके उनकी सतत् प्रेरणा ही साध्वी जी के इस महत् कार्य में सहायक रही है। इसके साथ ही कर्मठ, सेवाभावी, जिनशासन के अनुरागी, प्राणी मित्र कुमारपाल भाई वी. शाह एवं बड़ौदा निवासी, समाज सेवक, गच्छ के प्रति सदैव समर्पित, अध्ययन हेतु निरंतर सहयोगी नरेशभाई शांतिलाल पारख, आप दोनों का यह निर्देश रहा कि म.सा. पढ़ाई करना हो तो आप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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