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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि करना आवश्यक है, उसी प्रकार व्यक्ति के संसार भ्रमण को निर्मूल करने के लिए केशों का अपनयन करना आवश्यक है, क्योंकि केशों के उच्छेद से ही परमात्मा के समक्ष देहार्पण सम्भव होता है। जब तक संसाररूपी राग का उच्छेद नहीं होता, तब तक परमात्मा के समक्ष अपना पूर्ण समर्पण भी सम्भव नहीं होता है, इसीलिए गृहस्थ जीवन के व्रतों को स्वीकार करने में और प्रव्रज्या धारण करने में मुण्डनकर्म आवश्यक है । मुण्डन देहासक्ति और जन्म-मरण का उच्छेद करने के लिए है, इससे संसार के प्रति आसक्ति कम होती है, अतः धार्मिकजनों को प्रत्येक धर्मकार्य के पूर्व केशापनयन, अर्थात् मुण्डन करवाना चाहिए । यह मुण्डन - संस्कार व्रतग्रहण आदि अन्य सभी संस्कारों के प्रारम्भरूप है । विद्वानों ने इसी कारण से मुण्डनसंस्कार को भोजन के आरम्भ करने के समान प्राथमिक संस्कार बताया है । यह चूड़ाकरण - संस्कार का सार है । - Jain Education International 400 I उपनयन-संस्कार व्रतबन्ध (उपनयन) संस्कार द्वारा व्यक्ति वर्णत्व को प्राप्त करता है। उसके पश्चात् इसमें पुरुषों को जो सूत्र धारण करने का निर्देश दिया गया है, उसका कारण बताते हैं । विद्वानों ने ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र को मोक्ष का मार्ग कहा है । मर्यादा का प्रकाशक होने से सूत्र के रूप में उसे धारण करना आवश्यक है । गुरु के आदेश, चित्तवृत्ति एवं कुल की मर्यादा उस सूत्र को धारण करने मात्र से अलंघ्य हो जाती है, अर्थात् सूत्र को धारण करके मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सूत्र मर्यादाओं का प्रतीक है । मर्यादा से रहित लोगों के लिए तो लौहश्रृंखला का बंधन भी कोई अर्थ नहीं रखती है, क्योंकि स्वेच्छाचारी व्यक्तियों के लिए विधिनिषेधरूप मर्यादा का कोई अर्थ नहीं रह जाता। मर्यादाओं का उल्लंघन मनोभावों से ही होता है, इसीलिए सूत्र को हृदय - स्थान पर धारण करना शास्त्रसम्मत है । अनिष्ट पितृकर्म आदि में उसे विपरीत रूप से धारण किया जाता है । सभी कर्मों में सावधानीपूर्वक उसे शरीर पर धारण करना चाहिए । विद्वानों ने व्रतबन्ध एवं व्रतादेश के समय इसको धारण करने का निर्देश दिया है। इसी प्रकार दूसरों को व्रतदान की आज्ञा देते समय और व्रत - विसर्जन के समय भी इसका धारण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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