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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 379 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि किन्तु महानृप, सामन्त, मण्डलेश्वर आदि द्वारा वस्त्र, दण्ड, तलवार आदि प्रदान करने से ही उसका पदारोपण मान लिया जाता है। उसके अधिकार इस प्रकार होते हैं - अश्वारोहण, दण्डादि का धारण, राज्य प्रदत्त भूमि, पैदल सैन्य रखना और डिण्डिम-वाद्य। इसको अनुशासित करने की विधि इस प्रकार है - स्वामीभक्ति करना, हमेशा न्यायपूर्वक कार्य-अकार्य का विचार करना, ग्राम के सभी लोगों को अपने बन्धु के समान मानना, सभी जगह विनय-गुण को धारण करना, प्रियवचन बोलना, ग्रामीणजनों के क्रुद्ध होने पर भी कभी क्रोध नहीं करना, स्वयं का रुधिर देकर भी नृप और अपने ग्रामवासियों की रक्षा करना, दण्ड देकर या दण्डित किए बिना अपने स्वामी एवं पुर की रक्षा करना। प्रतिदिन (रात्रि में) जागकर ग्राम की रक्षा करना। मुसाफिरों एवं यात्रियों को कभी भी पीड़ा नहीं देना, खेती एवं पशुपालन करने वाले ग्रामीणों से कर लेना इत्यादि। इस प्रकार गुरु ग्रामाधिपति को अनुशासित करते हैं। पदारोपण-अधिकार में ग्रामाधिपति- पदारोपण की यह विधि बताई गई है। • मंत्रीपदारोपण-विधि - राजा के सदृश ही मंत्री भी सभी कार्यों को करने वाले, स्वाभिमानी, मतिमान् एवं राजा के प्राणों के समान होते हैं। मंत्रीपद के योग्य पुरुष के लक्षण इस प्रकार हैं - कुलीन, कार्यकुशल, धैर्यवान्, दाता, सत्य को सम्मान देने वाला, न्यायनिष्ठ, मेधावी, पराक्रमी, शास्त्रज्ञ, सर्वव्यसनों से मुक्त, दण्डनीति में प्रवीण, दूसरों के मनोभावों को समझने वाला, सत्यासत्य की परीक्षा करने में कुशल, सहोदर द्वारा अपराध होने पर उसके साथ शत्रु के समान व्यवहार करने वाला, धर्मकार्य में रत, दूरदर्शी, चारों प्रकार की बुद्धियों से युक्त, षट्दर्शनों में निपुण, भक्तिपरक एवं देव-गुरु का उपासक सदैव सदाचार का पालन करने वाला, पापकार्यों से विमुख, नीर-क्षीरवत् न्याय करने में सदैव समर्थ होना चाहिए। वंश-परम्परा से आगत मंत्री ही राजा के लिए योग्य कहा गया है। इस प्रकार का पुरुष ही मंत्रीपद के योग्य होता है तथा राज्य की वृद्धि करने वाला होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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