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आचार
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आचारदिनकर (खण्ड-४) 360 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि ६१. बीस स्थानक-तप -
अब बीस स्थानक-तप की विधि बताते हैं। इस तप में आराधक निम्न बीस पदों की आराधना करता है - १. अरिहंत की उपासना २. सिद्ध की उपासना ३. प्रवचन की उपासना ४. गुरुभक्ति ५. स्थविरभक्ति ६. बहुश्रुतभक्ति ७. तपस्वीभक्ति ८. अभीक्ष्णज्ञानोपयोग ६. सम्यक्त्व का पालन १०. विनय करना ११. आवश्यक (क्रिया) करना १२. ब्रह्मचर्य १३. धर्मध्यान १४. यथाशक्ति तप १५. वैयावृत्य १६. समाधि १७. अपूर्व ज्ञानार्जन १८. श्रुतभक्ति १६. ज्ञान-आराधना २०. संघ पूजादि करना। इस प्रकार बीस स्थानकों की आराधना करे। इस आराधना में तप करना कोई आवश्यक नहीं है, किन्तु मुक्ति के लिए इन बीस पदों की आराधना अवश्य करना चाहिए।
१. अरिहंत २. सिद्ध ३. प्रवचन ४. गुरु ५. स्थविर ६. बहुश्रुत ७. तपस्वी ८. ज्ञानोपयोग ६. दर्शन १०. विनय ११. आवश्यक १२. शीलव्रत १३. धर्मध्यान १४. तप १५. वैयावृत्य १६. समाधि १७. अपूर्वज्ञान १८. श्रुत-भक्ति १६. प्रवचन-प्रभावना (ज्ञानपूजा) एवं २०. धर्म-प्रभावना (संघपूजादि) - इन बीस की आराधना से जीव तीर्थंकर-नामकर्म का उपार्जन करता है, अर्थात् तीर्थकर-पद को प्राप्त करता है।
__ यह बीस स्थानकों की आराधना-विधि बताई गई है। सिद्धांतानुसार जिस तप की जितनी संख्या बताई गई है, उसके अनुसार किया गया तप कल्पना तप कहलाता है।
उद्यापनीय तप साधु एवं श्रावकों को साथ-साथ प्रारंभ करना चाहिए तथा उस तप का उद्यापन भी श्रावकों की सम्मति से किया जाना चाहिए। तप का उद्यापन उस तप में बताई गई सामग्रियों से करे। कालान्तर में पुनः उस तप को करने पर भी निश्चित विधि एवं सामग्रियों द्वारा पुनः उद्यापन करना चाहिए।
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