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आचारदिनकर (खण्ड- ४)
८१. निर्वाणदीप - तप
निर्वाणदीप - तप की विधि इस प्रकार है "वर्षत्रयं दीपमाला पूर्वे मुख्ये दिनद्वये ।
उपवासद्वयं कार्यं दीप प्रस्तारपूर्वकं । 19 । ।" निवार्ण मार्ग में दीपक के सदृश होने से इस तप को निर्वाणमार्ग- तप कहते हैं । इस तप में दीपावली की चतुर्दशी एवं इन दो दिन में निरन्तर दो उपवास करे। इन दोनों दिन, दिन में श्री महावीरस्वामी की प्रतिमा के आगे अखंड अक्षत चढ़ाए एवं रात्रि में अखंड घी का दीपक रखे ।
अमावस्या
वर्ष
१
२
३
इस तप के उद्यापन में तीसरे वर्ष के अन्त में बृहत्स्ना विधिपूर्वक महावीरस्वामी की पूजा कर एक हजार घी के दीपक रखे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती है। यह श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है
८२. अमृताष्टमी - तप
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मास कार्तिक वद
कार्तिक वदि
कार्तिक वद
,
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
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निर्वाणदीप-तप, आगाढ़
तिथि
तप
१४
उपवास
१४
उपवास
१४
उपवास
तिथि
१५
१५
१५
अमृताष्टमी - तप की विधि इस प्रकार है -
" शुक्लाष्टमीषु चाष्टासु, आचाम्लादितपांसि च ।
विदधीत स्वशक्त्या च, ततस्तत्पूरणं भवेत् । । १ । । “ अमृत जल से अभिषेकपूर्वक किए जाने वाले अष्टमी के तप को अमृताष्टमी -तप कहते हैं । यह तप शुक्लपक्ष की आठ अष्टमी' के
तप
उपवास
उपवास
उपवास
मूलग्रन्थ में आठ अष्टमी करने का निर्देश है, जबकि मूलग्रन्थ के यंत्र में ही ६ अष्टमी करने का निर्देश दिया गया है। नाम के अनुसार यह तप आठ अष्टमी तक ही करना चाहिए। ऐसा मानकर हमने यहाँ यंत्र में आठ अष्टमी का निर्देश किया है।
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