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आचारदिनकर (खण्ड- ४)
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महावीर - तप, आगाढ़ ( प्रथम वर्ष)
उ.१० पा. उ.१० पा. उ. १० पा. उ. १० पा. उ.१० पा. उ. १० पा.
उ.१० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ. १० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ. १० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ. १० पा. उ. १० पा. उ.१० पा. उ. १० पा. उ.१० पा.
उ. १० पा. उ. १० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ.१० पा. उ. १० पा. उ. १० पा. उ. १० पा.
इसी प्रकार १२ वर्ष एवं १३ पक्ष तक यह तप करे । ६४. लक्षप्रतिपद - तप
अब लक्षप्रतिपद - तप की विधि बताते हैं
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" शुक्ल प्रतिपदः सूर्य संख्या एकासनादिभिः । समर्थनीयास्तपसि लक्षपति पदाख्यके । । १ । । “
शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन यथाशक्ति एकासन आदि तप करके यह तप करे । इस तरह बारह प्रतिपदा, अर्थात् एक वर्ष में यह तप पूरा करे ।
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
इस तप के उद्यापन में पूजापूर्वक परमात्मा के आगे एक लाख परिमाण का धान्य चढ़ाए । धान्य का परिमाण इस प्रकार है
६५. सर्वांगसुन्दर-तप
चावल पाँच मन एक पाइली, मूंग एक सई दो पाइली, मोठ एक सइ दो पाइली, जव दो सइ, तिल सात पाइली, गेहूँ आठ सइ, चवला तीन सइ, चना एक सइ, कांगु (चांवल की एक जाति) तीन मण, कोद्रव तीन मण, उडद पाँच मण, तुअर चार सइ, ज्वार पाँच सइ । (सइ = लगभग ४ किलो ५०० ग्राम, पाइली = ६०० ग्राम)
इस तप के करने से अनगणित अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । यह श्रावक के करने योग्य आगाढ़ - तप है । इस प्रकार तपाधिकार में गीतार्थों द्वारा प्रतिपादित तप की विधि सम्पूर्ण होती हैं ।
अब फल की आकांक्षा से किए जाने वाले तप की विधि बताते हैं । वह इस प्रकार हैं
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अब सर्वांगसुन्दर तप की विधि बताते हैं -
" शुक्लपक्षेष्टोपवासा आचाम्लान्तरिताः क्रमात् । विधीयन्ते तेन तपो भवेत्सर्वांगसुन्दरम् ।।१।। "
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