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आचारदिनकर (खण्ड-४) 330 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि तप साधु एवं श्रावक - दोनों को करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास पूर्व पृष्ठ पर है। ५३. वर्ग-तप -
अब वर्ग-तप की विधि बताते हैं - _ “एकद्वयेकयुग्म भूमियमलैरेकद्विभूमिद्विकैद्वर्येकद्वीन्दुयुगेकयुग्मधरणीयुग्मेन्दुयुग्मैककैः।
एकद्वयेकभुजद्विचन्द्रधरणीयुग्मैकयुग्मेन्दुभिद्वर्येकद्वयेकयुगैर्युगेन्दुधरणीयुग्मैकयुग्मेन्दुभिः ।।१।।
द्विद्वयेकद्विमहीद्विभूमियुगलय्याय्याद्विभूमिद्वयैवर्येकद्वयेकमहीद्विचन्द्रयुगलैः श्रेण्यष्टकत्वं गतैः।
___ वर्गाख्यं तप उच्यते ह्यनशनैर्मध्योल्लसत्पारणैः सर्वत्रापिनिरन्तरैरपि दिनान्यस्मिन्खषट्भूमयः ।।२।।
वर्ग के आंकड़े की तरह जो तप किया जाता है, उसे वर्ग-तप कहते हैं। इस तप की प्रथम श्रेणी में क्रमशः एक, दो, एक, दो, दो, एक, दो एवं एक उपवास एकान्तर पारणे से करे। द्वितीय श्रेणी में क्रमशः एक, दो, दो, एक, दो, एक, दो एवं एक उपवास एकान्तर पारणे से करे। तीसरी श्रेणी में क्रमशः दो, एक, दो, एक, एक, दो, एक एवं एक उपवास एकान्तर पारणे से करे। चौथी श्रेणी में क्रमशः दो, एक, एक, दो, एक, दो, एक एवं दो उपवास एकान्तर पारणे से करे। पाँचवीं श्रेणी में क्रमशः एक, दो, एक, दो, दो, एक, एक एवं दो उपवास एकान्तर पारणे से करे। छठवीं श्रेणी में क्रमशः एक, दो, एक, दो, दो, एक, दो एवं एक उपवास एकान्तर पारणे से करे। सातवीं श्रेणी में दो, एक, दो, एक, एक, दो, दो एवं एक उपवास एकान्तर पारणे से करे। आठवीं श्रेणी में दो, एक, दो, एक, दो, एक, दो एवं एक उपवास एकान्तर पारणे से करे।।
इस प्रकार आठ श्रेणियों के कुल ६६ उपवास से यह तप पूरा करे। इस तप में ६४ दिन पारणे के आते हैं। इस प्रकार इस तप में कुल १६० दिन होते हैं।
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक १६०-१६० नैवेद्य, फल आदि परमात्मा के आगे चढाए। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा
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