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आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
इस तप का उद्यापन भद्रतप की तरह ही करे। कुछ आचार्य इन चारों भद्रादितप के उद्यापन में उपवास की संख्या के अनुसार पुष्प, फल एवं पकवान परमात्मा के आगे रखने के लिए कहते हैं ! इस तप में सब प्रकार की शांति, समस्त कर्मों का क्षय एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह तप साधुओं एवं श्रावकों दोनों को करने योग्य । आगाढ़-तप है ।
३१. गुणसंवत्सर- तप -
अब गुणसंवत्सर तप की विधि बताते हैं - " गुणरत्नं षोडशभिर्मासैः संपूर्यते पुनस्तत्र । मासे चैकादिषोडशान्ताः स्युरूपवासाः पंचदश ।।१।।“ गुणरूपी रत्नों की प्राप्ति होने के कारण इस तप को गुणरत्न - तप कहते हैं । इसमें प्रथम मास में एक उपवास और एक पारणा, इस प्रकार पंद्रह उपवास और पंद्रह पारणा मिलकर तीस दिन में पूरा होता है । द्वितीय मास में दो-दो उपवास करके पारणा करने से बीस उपवास के तथा दस पारणा के दिन मिलकर तीस दिन में पूरा होता है। तीसरे माह में तीन-तीन उपवास करके एक पारणा करने से चौबीस उपवास तथा आठ पारणा मिलकर बत्तीस दिन होते हैं। चौथे माह में चार-चार उपवास करके एक-एक पारणा करने से चौबीस उपवास तथा छः पारणा मिलकर तीस दिन होते हैं । पाँचवें माह में पाँच उपवास पर पारणा करने से पच्चीस उपवास के दिन और पाँच पारणे के दिन मिलकर तीस दिन होते हैं। छठवें मास में छः-छः उपवास पर पारणा करने से चौबीस उपवास के दिन और चार पारणे के दिन मिलकर अट्ठाईस दिन होते हैं। सातवें माह में सात-सात उपवास पर पारणा करने से इक्कीस उपवास के दिन और तीन पारणे के दिन मिलकर चौबीस दिन होते हैं। आठवें माह में आठ-आठ उपवास पर पारणा करने से चौबीस उपवास के दिन और तीन पारणे के दिन मिलाकर सत्ताईस दिन होते हैं । नवें माह में नौ-नौ उपवास पर पारणा करने से सत्ताईस उपवास और तीन पारणा मिलकर तीन दिन होते हैं। दसवें मास में दस-दस उपवास पर पारणा करने से तीस उपवास के दिन और तीन पारणे के दिन मिलाकर
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