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________________ वर्ष, छ: माह के उद्यापन में आचारदिनकर (खण्ड-४) 308 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि प्रकार हर एक के बाद पारणा करे। इस तरह कुल उपवास के दिन ४६७ तथा पारणे के दिन ६१ मिलकर कुल ५५८ दिन, अर्थात् १ वर्ष, छ: माह और अठारह दिन में यह तप पूरा होता है। इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक उपवास की संख्या के अनुसार पुष्प, फल तथा नैवेद्य आदि चढ़ाए। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से उपशमश्रेणी की प्राप्ति होती है। यह तप साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - आदि चढ़ाए। साधाप्राप्ति होती के भद्रतप तप की विEि: पंचभूयः मिभिः अब भद्रतप की विधि बताते हैं - “एकद्वित्रिचतुःपंचत्रिचतुः पंचभूद्वयैः । ___ पंचैकद्वित्रिवेदैश्च, द्वित्रिवेदेषुभूमिभिः ।।१।। चतुःपंचश्चैकद्वित्रिभिश्चोपवासैः श्रेणिपंचकम्। भद्रेतपसि मध्यस्थपारण श्रेणि संयुतम् ।।२।।" यह तप भद्र,अर्थात् कल्याणकारी होने से भद्रतप कहलाता है। इस तप की प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम एक उपवास करके पारणा करे। फिर दो, तीन, चार और पाँच उपवास कर हर एक के बाद पारणा करे। दूसरी श्रेणी में सर्वप्रथम तीन उपवास करे। फिर चार, पाँच, एक और दो उपवास कर हर एक के बाद पारणा करे। तीसरी श्रेणी में पाँच उपवास करे। फिर एक, दो, तीन एवं चार उपवास कर हर एक के बाद पारणा करे। चौथी श्रेणी में सर्वप्रथम दो उपवास करे, फिर तीन, चार, पाँच और एक उपवास कर हर एक के बाद पारणा करे। पाँचवीं श्रेणी में सर्वप्रथम चार उपवास करे, फिर पाँच, एक, दो और तीन उपवास कर पारणा करे। (सबके अंत में एक ही पारणे का दिन आता है।) इस प्रकार कुल उपवास ७५ तथा पारणे के दिन २५ मिलाकर तीन माह और दस दिन में यह तप पूर्ण होता है। इस तप के उद्यापन में परमात्मा की स्नात्रपूजा करे। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघ पूजा करे। इस तप के करने से कल्याण की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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