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आचारदिनकर (खण्ड-४)
297 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि : आगम में ज्ञानादिकत्रिक-ऊनोदरिका का परिमाण बताया गया है। वह इस प्रकार है - "नवचउसट्ठीपणवीससोलनवछसय सट्ठि तह सोल।
चउसट्ठी चउसट्ठी तीसा चउसय असीअहिआ।।१।। अडयालइक्कवण्णा छसयाअडसमाहिया पंच।
नाणतिगाई ऊणोदरं तु तवदिणप्रमाणमिणं ।।२।।" इस तप के उद्यापन में परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा साधर्मिकवात्सल्य एवं संघ की पूजा करे। इस तप के करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह तप साधु एवं श्रावक - दोनों के करने योग्य आगाढ़-तप है। ऊनोदरिका-तप का यंत्र इस प्रकार है -
| पुरुष ऊनोदरिका | जघन्य, | लोक । स्त्रियों का ज.म.उ. ग्रास स्त्रियाँ लोकतप आगाढ ग्रास | मध्यम, प्रवाहोनोदरी-तप ऊनोदरिका तप
प्रवाह उत्कृष्ट ग्रास आगाढ़
उनोद
रिका अल्पा . १/२/| ज.१ प्रथम | कवल | १/२/३ | अल्पा. | ज. १/२ | प्रथम | कवल
३/४/ म.२/३/४ | दिन | ८ |/४/५/ म. ३/४/५ दिन | ७ ५/६/ /५.६/७/
६/७ ७/८ | अपार्धा ६/१०/ ज. द्वितीय | कवल | ८/६/ | अपार्धा | ज. ८ द्वितीय | कवल ११/१२ | म. १०/११/ दिन | १२ | १०/११ | म. ६ | दिन | ११ उ./१२
उ. १०/११ द्विभागा|१३/१४/ ज.१३ | तृतीय | कवल | १२/१३ | द्विभागा| ज. १२ तृतीय | कवल १५/१६ म.१४ । दिन | १६ | /१४
म. १३ | दिन | उ.१५/१६
उ. १४ प्राप्ता १७/१८/ज.१७/१८ / चतुर्थ | कवल १५/१६// प्राप्ता ज. १५/१६ चतुर्थ
१६/२०/ म.१६/२० दिन | १४ | १७/ २१/२२/ /२१/२२
१८/१६// १७/१८/१६ २३/२४ उ.२३/२४
२०/२१
उ. २०/२१ किंचि-|२५/२६ | ज.२५/२६ | पंचम | कवल २२/२३// किंचि- ज. २२/२३ पंचम दूना | /२७/ | म.२७/२८ | दिन | ३१
म. २४/२५ दिन २८/ | /२६ उ.
२५/२६ उ. २६/२७ २६/३०/ ३०/३१
/२७ ३१
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