________________
आचारदिनकर (खण्ड- -४)
295
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
हैं। अब इन तपों से सम्बन्धित संख्या का विवेचन करते हैं, वह इस प्रकार है
अल्पाहार एक से आठ कवल तक आहार करना, अल्पाहार कहलाता है ।
अपार्धा नौ से बारह कवल तक आहार करना, अपार्धा कहलाता है ।
द्विभागा - तेरह से सोलह कवल तक आहार करना, द्विभागा कहलाता है ।
प्राप्ता सत्तरह से चौबीस कवल तक आहार करना प्राप्ता
-
कहलाता है ।
किंचिदूना किंचिदूना कहलाता है
ये पाँचों ऊनोदरिका तीन-तीन तरह की है, जो इस प्रकार हैंएकादि कवल द्वारा जघन्य, दो आदि कवल से मध्यम और आठ आदि कवल से उत्कृष्ट इस प्रकार से पाँचों तरह की ऊनोदरिका को समझना चाहिए। इसमें अल्पाहार - ऊनोदरिका एक ग्रास से जघन्य, दो, तीन, चार और पाँच ग्रास से मध्यम और छः, सात और आठ ग्रास से उत्कृष्ट जानना चाहिए । अपार्धा - ऊनोदरिका नौ ग्रास से जघन्य, दस और ग्यारह ग्रास से मध्यम और बारह ग्रास से उत्कृष्ट जाननी चाहिए । द्विभागा- ऊनोदरिका तेरह ग्रास से जघन्य, चौदह तथा पन्द्रह ग्रास से मध्यम और सोलह ग्रास से उत्कृष्ट समझनी चाहिए। प्राप्ता - ऊनोदरिका सत्तरह और अठारह ग्रास से जघन्य, उन्नीस, बीस, इक्कीस और बाईस ग्रास से मध्यम और तेईस या चौबीस ग्रास से उत्कृष्ट जाननी चाहिए । किंचिदूना - ऊनोदरिका पच्चीस और छब्बीस ग्रास से जघन्य, सत्ताईस, अट्ठाईस उनतीस ग्रास से मध्यम तथा तीस एवं एकतीस ग्रास से उत्कृष्ट जाननी चाहिए। पुरुषों का आहार बत्तीस ग्रास का होता है, इसलिए एकतीस ग्रास तक किंचिदूना - ऊनोदरिका होती है । इस प्रकार पाँचों प्रकार की ऊनोदरिका पन्द्रह दिन में समाप्त होती है ।
तथा
Jain Education International
-
पच्चीस से एकतीस कवल तक आहार करना
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org