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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि आश्विन शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा के दिन नमिनाथ भगवान् का च्यवन-कल्याणक आता है। परमात्मा के कल्याणक के समय नारकी के जीवों को भी मुहूर्तमात्र के लिए सुख की अनुभूति होती है, इस तरह विश्वत्रय का कल्याण करने वाला होने से इसे कल्याणक-तप कहा गया है। कल्याणक के दिनों में किस शुभ दिन कल्याणक-तप का प्रांरभ करते हैं। आगम-वचन के अनुसार जिन-जिन तिथियों में जिन-जिन परमात्मा का च्यवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञान एवं निर्वाण-कल्याणक आते हैं, उस दिन एक कल्याणक हो, तो एक भक्त, दो कल्याणक हों, तो निर्विकृति, तीन कल्याणक हों, तो आयम्बिल तथा चार कल्याणक हों, तो उपवास करे। यदि एक साथ पाँच कल्याणक हों, तो प्रथम दिन उपवास करे तथा दूसरे दिन एक भक्त करे। इस प्रकार इस कल्याणक-तप में एक उपवास, दो आयंबिल, तेरह, नीवि और चौरासी एकासन होते हैं। वर्ष भर इस प्रकार का तप करे- इस प्रकार सात वर्षों तक यह तप करे। सातवें वर्ष के अन्त में उद्यापन करे। उद्यापन में परमात्मा के आगे चौबीस की संख्या में स्नात्रपट, स्नात्रकलश, चन्दनपात्र, धूपदहनपात्र, वस्त्र, नैवेद्यपात्र, कुम्पिका आदि पूजा के उपकरण रखे तथा बृहत्स्नात्रविधि से परमात्मा की स्नात्रपूजा करे। सर्व प्रकार के पकवान तथा चौबीस जाति के विभिन्न फल चौबीस-चौबीस की संख्या में परमात्मा की प्रतिमा के समक्ष चढ़ाए। स्वर्णमय रत्नजटित चौबीस तिलक भी परमात्मा की प्रतिमा के समक्ष चढ़ाए, अर्थात् लगाए। साधुओं को अन्न, वस्त्र एवं पात्र दान दे तथा संघ की पूजा करे। प्रकारान्तर से कल्याणक-तप की दूसरी विधि बताते हुए कहते परमात्मा के च्यवन एवं जन्म-कल्याणक के दिन एक-एक उपवास करे तथा दीक्षा, ज्ञान एवं निर्वाण-कल्याणक के दिन जिस परमात्मा द्वारा जो तप किया है, वही तप एकान्तर उपवास के द्वारा करे। इसके उद्यापन की विधि पूर्व में बताए गए अनुसार ही है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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