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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) 220 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि घी की विकृति - औषधि डालकर पकाया हुआ घी, घी की किट्टी, घी में पकी हुई औषध के ऊपर की तरी, पूरी आदि तलने के बाद बचा हुआ घी तथा विस्यंदन - ये पाँच घी के निवियाते हैं। तैल की विकृति - तेल की मलाई, तिलकुट्टी, पूडी आदि तलने के बाद बचा हुआ तेल, औषध पकाने के बाद उसके ऊपर से उतारा हुआ तेल, लाक्षा आदि डालकर पकाया हुआ तेल - ये पाँच तेल के निवियाते हैं । गुड़ की विकृति - आधा उबाला हुआ गन्ने का रस, गुड़ का पानी, मिश्री, गुड़ की चाशनी और शक्कर ये पाँच गुड के निवियाते - हैं । अवगाहित (पक्वान्न) की विकृति एक पावा निकालने के बाद के पावे, तीन पावे निकालने के बाद के पावे, गुड़धानी आदि, जल लापसी तथा तवे पर घी या तेल का पोता देकर बनाई हुई पूड़ी (टिकड़ा) आदि - ये पाँच पक्वान्न विगय के निवियाते हैं। इस प्रकार इन छः भक्ष्य विकृतियों में से बनाए गए तीस प्रकार के निवियाते भी (निर्विकृति के प्रत्याख्यान में) भक्ष्य हैं अब अभक्ष्यविकृति का विवेचन करते हैं 1 शहद के तीन भेद हैं- मधुमक्खी, कीट एवं भ्रमर से निर्मित शहद । शराब के दो भेद हैं - काष्ठ (गन्ने के रस ) एवं आटे से बनाई गई शराब | मांस तीन प्रकार के प्राणियों का होता है - जलचर, स्थलचर एवं खेचर | नवनीत (मक्खन) के चार प्रकार पूर्व में बताए गए हैं। - - गृहस्थ-संसृष्ट गृहस्थ द्वारा स्वयं के लिए बनाए गए दुग्धादि से संस्पृष्ट भात आदि के ऊपर चार अंगुल - परिमाण दूध और दही तैरते हों, तो वह मिश्रित भात निवियाता कहलाता है। इसी प्रकार अन्य वस्तुएँ जैसे तैरते हुए दूध, दही और मदिरा से कहलाते हैं, विगईरूप नहीं माने जाते। Jain Education International - चार अंगुल - परिमाण ऊपर मिश्रित भात आदि संस्पृष्ट इससे अल्प हो जाने पर वे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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