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आचारदिनकर (खण्ड- :-8)
210 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
इन चारों ही प्रकार के आहार का अनाभोग एवं सहसाकार अपवादपूर्वक त्याग करता हूँ ।
विशिष्टार्थ -
'नमोक्कार सहियं' बोलने के पश्चात् गुरु कहते हैं “प्रत्याख्यान करो", अथवा बहुत से लोगों के होने पर गुरु कहते हैं“प्रतिषिद्ध", अर्थात् जो वस्तुएँ ऊपर बताई गई हैं, उनका त्याग करो। इस समय शिष्य कहता है - " मैं प्रत्याख्यान करता हूँ ।"
चार प्रकार का आहार
अशन - ओदन आदि अनाज, सत्तू आदि चूर्ण (आटा), मूँग आदि कठोल, राब आदि खाद्य पदार्थ, खाजा, खीर आदि पक्वान्न, आदु आदि सब्जियाँ, मालपुआ आदि अशन आहाररूप हैं। जिनको खाने से बल में वृद्धि होती हों तथा क्षुधा शान्त होती हो, उसे अशन कहते हैं
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ओदन - शालि (चावल), कंगु, चीनक, क्रोद्रव आदि धान्य को ओदन में समाहित किया गया है।
सत्तू - यव, मसूर, कुलत्थ, ब्रीहि एवं चनक (चने) आदि के चूर्ण को सत्तू कहते हैं। मूंग, मोठ, मसूर, तुअर, उड़द, कुलत्थ आदि द्विदल अन्न का मूंग शब्द में समावेश किया गया है।
राब छाछ एवं अनाज मिलाकर बनाई गई राब आदि खाद्य पदार्थ का राब शब्द में समावेश किया गया है 1
खीर खीर आदि शब्द का तात्पर्य खीर, दही, छाछ, घी
आदि है।
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आदु सूरनादि शब्द का तात्पर्य सभी प्रकार की गीली
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जमीकंद है।
मंडकादि - मंडक आदि शब्द का तात्पर्य पुएँ, पूरणपोली, कंसार आदि हैं।
पाण कांजी, जौ आदि का पानी, अनेक प्रकार की सुरा, कुआ, बावड़ी, तालाब आदि का जल, ककड़ी, तरबूज आदि का पानी पानकरूप है। तृष्णा एवं दाह का शमन करने के लिए जिसका पान किया जाता है, उसे पान, अर्थात् पेय पदार्थ कहते हैं ।
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