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________________ आचारदिनकर (खण्ड- -8) भावार्थ - भावार्थ “वंदित्तु सव्वसिद्धे धम्मायरिए अ सव्व साहू अ । सभी सिद्ध भगवंतों, धर्माचार्यों तथा साधुओं को वन्दन करके श्रावकधर्म में लगे हुए अतिचारों को मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ । विशिष्टार्थ - किया गया है। सव्वसिद्धे सिद्धों के पन्द्रह भेद बताए गए हैं, इस प्रकार यहा सिद्ध शब्द का ग्रहण करके अरिहंत एवं सिद्ध-दोनों को नमस्कार किया गया है । इस शब्द में उपाध्याय - पद का भी समावेश धम्मायरिय - 185 इच्छामि पडिक्कमिउं, सावग धम्माइ आरस्स | 19 ।। " प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि " जो में वयाइयारो नाणे तह दंसणे चरित्ते य । - मुझे व्रतों के विषय में और ज्ञान, दर्शन और चारित्र के विषय में सूक्ष्म या बादर, जो अतिचार लगा हो, उसकी मैं निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ । विशिष्टार्थ सुहुमो अ बायरो वा तं निंदे तं च गरिहामि ।।२।।“ Jain Education International - ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र नाणे - दंसणे चरित्ते य इन तीनों के अतिचारों का कथन पूर्व में उनसे सम्बन्धित गाथाओं में किया गया है निंदे - गरिहामि - गाथा में समानार्थक निन्दा एवं गरिहामि शब्द का प्रयोग विशेष रूप से प्रतिक्रमण करने के उद्देश्य से किया गया है। "दुविहे परिग्गहम्मी, सावज्जे बहुविहे अ आरंभे । कारावणे अ करणे, पडिक्कमे देवसियं सव्वं । । ३ । ।" - भावार्थ बाह्य और अभ्यन्तर दो प्रकार के परिग्रह के कारण, पाप वाले अनेक प्रकार के आरम्भ दूसरे से करवाते हुए एवं अनुमोदन करते हुए दिवस सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ । - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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