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________________ "मंगलकामना" जिनशासन में आचार की प्रधानता है। आचार के अपने विधि-विधान होते हैं। 'आचारदिनकर' ऐसे ही विधि-विधानों का एक ग्रन्थ है। साध्वीश्री मोक्षरत्नाश्रीजी ने डॉ. सागरमलजी जैन के सान्निध्य में शाजापुर जाकर इस ग्रन्थ पर न केवल शोधकार्य किया, अपितु मूलग्रन्थ के अनुवाद का कठिन कार्य भी चार भागों में पूर्ण किया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि उन्होंने सम्पूर्ण ग्रंथ का अनुवाद कर लिया है और उसका प्रथम और द्वितीय विभाग प्रकाशित भी हो चुका है, साथ ही उसके तीसरे एवं चौथे भाग भी प्रकाशित हो रहे हैं। आज श्वेताम्बर-मूर्तिपूजक-परम्परा में जो विधि-विधान होते हैं, उन पर आचारदिनकर का बहुत अधिक प्रभाव देखा जाता है और इस दृष्टि से इस मूलग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित होना एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि इसके माध्यम से हम पूर्व प्रचलित विधि-विधानों से सम्यक् रूप से परिचित हो सकेंगे। इसमें गृहस्थधर्म के षोडश-संस्कारों के साथ-साथ मुनि-जीवन के विधि-विधानों का उल्लेख तो है ही, साथ ही इसमें प्रतिष्ठा आदि सम्बन्धी विधि-विधान भी हैं, जो जैन-धर्म के क्रियाकाण्ड के अनिवार्य अंग हैं। ऐसे महत्वपूर्ण ग्रंथ के हिन्दी अनुवाद के लिए साध्वीजी द्वारा किए गए श्रम की अनुमोदना करता हूँ और यह अपेक्षा करता हूँ कि वे सतत रूप से जिनवाणी की सेवा एवं ज्ञानाराधना में लगी रहें। यही मंगलकामना ........ कुमारपाल वी. शाह कलिकुण्ड, धोलका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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