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________________ ३२ जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। जिस प्रकार निपुण चालक भी वायु या गति की क्रिया के अभाव में जहाज को इच्छित किनारे पर नहीं पहुंचा सकता वैसे ही ज्ञानी आत्मा भी तप-संयम रूप सदाचरण के अभाव में मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता।' मात्र जान लेने से कार्य-सिद्धि नहीं होती । तैरना जानते हुए भी कोई कायचेष्टा नहीं करे तो डूब जाता हैं, वैसे ही शास्त्रों को जानते हुए भी जो धर्म का आचरण नहीं करता, वह डूब जाता है। जैसे चन्दन ढोने वाला चन्दन से लाभान्वित नहीं होता, मात्र भार-वाहक ही बना रहता है वैसे ही आचरण से हीन ज्ञानी ज्ञान के भार का वाहक मात्र है, इससे उसे कोई लाभ नहीं होता । ज्ञान और क्रिया के पारस्परिक सम्बन्ध को लोक-प्रसिद्ध अंध-पंगु न्याय के आधार पर स्पष्ट करते हुए आचार्य लिखते है कि जैसे वन में दावानल लगने पर पंगु उसे देखते हुए भी गति के अभाव में जल मरता है और अन्धा सम्यक् मार्ग न खोज पाने के कारण जल मरता है वैसे ही आचरणविहीन ज्ञान पंगु के समान है और ज्ञानचक्षु विहीन आचरण अन्धे के समान है। आचरणविहीन ज्ञान और ज्ञान-विहीन आचरण दोनों निरर्थक हैं और संसार रूपी दावानल से साधक को बचाने में असमर्थ हैं । जिस प्रकार एक चक्र से रथ नहीं चलता, अकेला अन्धा अकेला पंगु इच्छित साध्य तक नहीं पहुँचते, वैसे ही मात्र ज्ञान अथवा मात्र क्रिया से मुक्ति नहीं होती, वरन् दोनों के सहयोग से मुक्ति होती है ।४ भगवतीसूत्र में ज्ञान और क्रिया में से किसी एक को स्वीकार करने की विचारणा को मिथ्या विचारणा कहा गया है। महावीर ने साधक की दृष्टि से ज्ञान और क्रिया के पारस्परिक सम्बन्ध की एक चतुभंगी का कथन इसी संदर्भ में किया है १. कुछ व्यक्ति ज्ञान सम्पन्न है, लेकिन चारित्र-सम्पन्न नहीं हैं। २. कुछ व्यक्ति चारित्र सम्पन्न हैं, लेकिन ज्ञान-सम्पन्न नहीं हैं। ३. कुछ व्यक्ति न ज्ञान सम्पन्न हैं, न चारित्र सम्पन्न हैं। ४. कुछ व्यक्ति ज्ञान सम्पन्न भी हैं और चारित्र-सम्पन्न भी है । महावीर ने इनमें से सच्चा साधक उसे ही कहा जो ज्ञान और क्रिया, श्रुत और शील दोनों से सम्पन्न है। इसी को स्पष्ट करने के लिए एक निम्न रूपक भी दिया जाता है१. कुछ मुद्रायें ऐसी होती हैं जिनमें धातु भी खोटी है मुद्रांकन भी ठीक नहीं है । २. कुछ मुद्राएँ ऐसी होती हैं जिनमें धातु तो शुद्ध है लेकिन मुद्रांकन ठीक नहीं है । ३. कुछ मुद्राएँ ऐसी हैं जिनमें धातु अशुद्ध है लेकिन मुद्रांकन ठीक है । ४. कुछ मुद्राएँ ऐसी हैं जिनमें धातु भी शुद्ध है और मुद्रांकन भी ठीक है। १. आवश्यकनियुक्ति, ९५-९७ २. वही, ११५१-५४ ३. वही, १०० ४. वही १०१-१०२ ५. भगवतीसूत्र ८।१०।४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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