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उपसंहार
अनासक्त जीवन-दृष्टि का निर्माण
जैसा कि हमने देखा, जैन बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का अन्तिम नैतिक सिद्धान्त यदि कोई है तो वह अनासक्त जीवन दृष्टि का निर्माण है। जैन दर्शन में राग के प्रहाण का, बौद्ध दर्शन में तृष्णा-क्षय का और गीता में आसक्ति के नाश का जो उपदेश है, उसका लक्ष्य है अनासक्त जीवन-दृष्टि का निर्माण । जैन आचार-दर्शन के समग्र नैतिक विधि-निषेध राग के प्रहाण के लिए हैं, बौद्ध दर्शन के सभी उपदेशों का अन्तिम हार्द है तृष्णा का क्षय और गीता में कृष्ण के उपदेश का सार है फलासक्ति का त्याग। इस प्रकार तीनों आचारदर्शनों का सार एवं उनकी अन्तिम फलश्रुति है, अनासक्त जीवन जीने की कला का विकास । यही समग्र नैतिक एवं आध्यात्मिक जीवन का सार है और यही नैतिक पूर्णता की अवस्था है ।
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