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हुआ है, इसमें मैं अपनी मौलिकता का भी क्या दावा करूँ ? मैंने तो अनेकानेक महापुरुषों, ऋषियों, सन्तों, विचारकों एवं लेखकों के शब्द एवं विचार-सुमनों का संचय कर मां सरस्वती के समर्पण के हेतु इस माला का ग्रथन किया है, इसमें जो कुछ मानव के लिए उत्तम हितकारक एवं कल्याणकारक तत्त्व हैं, वे सब उनके हैं । हाँ, यह संभव है कि मेरी अल्पमति एवं मलिनता के कारण इसमें दोष आगये हों, उन दोषों का उत्तरदायित्व मेरा अपना है।
यदत्र सौष्ठवं किंचित्तद्गुर्वोरेव मे न हि । यदत्रासौष्ठवं किंचित्तन्ममैव तयोर्न हि ।।
सागरमल जैन
वीर निर्वाण दिवस-दीपावली
१५ नवम्बर, १९८२
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