________________
सम्यक्चारित्र (शील)
पापों से विरति भी सामायिक चारित्र है। सामायिक चारित्र दो प्रकार का है(अ) इत्वरकालिक-जो थोड़े समय के लिए ग्रहण किया जाता है और (ब) यावत्कथितजो सम्पूर्ण जीवन के लिए ग्रहण किया जाता है ।
२. छेदोपस्थापनीयचारित्र-जिस चारित्र के आधार पर श्रमण जीवन में वरिष्ठता और कनिष्ठता का निर्धारण होता है वह छेदोपस्थापनीय चारित्र है । यह सदाचरण का बाह्य रूप है, इससे आचार के प्रतिपादित नियमों का पालन करना होता है और नियम के प्रतिकूल आचरण पर दण्ड देने की व्यवस्था होती है।
३. परिहारविशुद्धिचारित्र-जिस आचरण के द्वारा कर्मों का अथवा दोषों का परिहार होकर निर्जरा के द्वारा विशुद्धि हो वह परिहारविशुद्धिचारित्र है ।
४. सूक्ष्मसम्परायचारित्र-जिस अवस्था में कषाय-वृत्तियाँ क्षीण होकर किंचित् रूप में ही अवशिष्ट रही हों, वह सूक्ष्म सम्परायचारित्र है।
५. यथाख्यातचारित्र-कषाय आदि सभी प्रकार के दोषों से रहित निर्मल एवं विशुद्ध चारित्र यथाख्यातचारित्र है । यथाख्यातचारित्र निश्चयचारित्र है। चारित्र का त्रिविध वर्गीकरण ___ वासनाओं के क्षय, उपशम और क्षयोपशम के आधार पर चारित्र के तीन भेद हैं । १. क्षायिक, २. औपशमिक और ३. क्षायोपशमिक । क्षायिकचारित्र हमारे आत्मस्वभाव से प्रतिफलित होता है । उसका स्रोत हमारी आत्मा ही है, जब कि औपश मिकचारित्र में यद्यपि आचरण सम्यक् होता है, लेकिन आत्मस्वभाव से प्रतिफलित नहीं होता । वह कर्मों के उपशम से प्रकट होता है। आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में क्षायिकचारित्र में वासनाओं का निरसन हो जाता है, जब कि औपशमिकचारित्र में मात्र वासनाओं का दमन होता है । वासनाओं का दमन और वासनाओं के निरसन में जो अन्तर है, वही अन्तर औपशमिक और क्षायिकचारित्र में है। नैतिक साधना का लक्ष्य वासनाओं का दमन नहीं, वरन् उसका निरसन या परिष्कार है । अतः चारित्र का क्षायिक प्रकार ही नैतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है ।
चारित्र के उपर्युक्त सभी प्रकार आत्मशोधन की प्रक्रियाएँ हैं । जो प्रक्रिया जितनी अधिक मात्रा में आत्मा को राग, द्वेष और मोह से निर्मल बनाती है, वासनाओं की आग से तप्त मानस को शीतल करती है और संकल्पों और विकल्पों के चंचल झंझावात से बचा कर चित्त को शान्ति एवं स्थिरता प्रदान करती है और समाजिक एवं वैयक्तिक जीवन में समत्व की संस्थापना रखती है, वह उतनी ही अधिक मात्रा में चारित्र के उज्ज्वलतम पक्ष को प्रस्तुत करती है। बौद्ध-दर्शन और सम्यक्चारित्र
बौद्ध-दर्शन में सम्यक्चारित्र के स्थान पर शील शब्द का प्रयोग हुआ है । बौद्ध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org