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जैन, बौर तथा गोता के प्राचारपर्शनोंका तुलनात्मक अध्ययन का विचार नहीं करता है। वह जो भी कुछ करता है वह मात्र स्वार्थ-प्रेरित होता है । रास के तीसरे स्तर में भी व्यक्ति नैतिक दृष्टि से अनुचित सुख प्राप्त करना चाहता है । इस प्रकार यहाँ पर भी रास एवं जैन-दृष्टिकोण विचार साम्य रखते हैं ।
रास के चौथे, पांचवें और छठे स्तरों को संयुक्त रूप से तुलना जैन-दृष्टि की तेजोलेश्या के स्तर के साथ हो सकती है। रास चौथे स्तर में प्राणी की प्रकृति इस प्रकार बताते हैं कि व्यक्ति सुख तो पाना चाहता है, लेकिन वह उन्हीं सुखों की प्राप्ति का प्रयास करता है जो यदि नैतिक दृष्टि से उचित नहीं, तो कम से कम अनुचित भी नहीं हों, जबकि रास के अनुसार पाँचवें स्तर पर प्राणी नैतिक दृष्टि से उचित सुखों की प्राप्त करना चाहता है तथा छठे स्तर पर वह दूसरों को सुख देने का प्रयास भी करता है । जैन-विचारणा के अनुसार भी तेजोलेश्या के स्तर पर प्राणी नैतिक दृष्टि से उचित सुखों को ही पाने की इच्छा रखता है, साथ-साथ वह दूसरे की सुख-सुविधाओं का भी ध्यान रखता है।
रास के सातवें स्तर की तुलना जैन-दृष्टि में पद्मलेश्या से की जा सकती है, क्योंकि दोनों के अनुसार इस स्तर पर व्यक्ति दूसरों के हित का ध्यान रखता है तथा दूसरों के हित के लिए उस सब कार्यों को करने में भी तत्पर रहता है, जो नैतिक दृष्टि से शुभ है।
रास के अनुसार मनोभावों के आठवें सर्वोच्च स्तर पर व्यक्ति को मात्र अपने कर्तव्य का बोध रहता है, वह हिताहित की भूमिकाओं से ऊपर उठ जाता है। उसी प्रकार जैन-विचारणा के अनुसार भी नैतिकता की इस उच्चतम भूमिका में जिसे शुक्ललेश्या कहा जाता है, व्यक्ति को समत्व भाव की उपलब्धि हो जाती है, अतः वह स्व और पर भेद से ऊपर उठकर मात्र आत्म-स्वरूप में स्थित रहता है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि न केवल जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शन वरन् पाश्चात्य विचारक भी इस विषय में एकमत हैं कि व्यक्ति के मनोभावों से उसका चरित्र बनता है और उसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है । व्यक्ति का आचरण एक ओर उसके मनोभावों का परिचायक है, तो दूसरी ओर उसके नैतिक व्यक्तित्व का निर्माता भी है। मनोभाव एवं तज्जनित आचरण जैसे-जैसे अशुभ से शुभ की ओर बढ़ता है, वैसे वैसे नैतिक दृष्टि से व्यक्तित्व में भी परिपक्वता एवं विकास दृष्टिगत होता है। ऐसे शुद्ध, संतुलित, स्थिर एवं परिपक्व व्यक्तित्व का निर्माण ही आचार-दर्शन का लक्ष्य है।
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