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________________ ५०३ १. लोभ | २. इच्छा | ३. मूर्छा | ४. कांक्षा | ५. गृद्धि | ६. तृष्णा | ७. मिथ्या | ८. अभिध्या | ९. आशंसना | १०. प्रार्थना | ११. लालपनता | १२. कामाशा | १३. भोगाशा | १४. जीविताशा | १५. मरणाशा | १६. नन्दिराग ५०३ / १३. लोभ के चार भेद १. अनन्तानुबन्धी लोभ | २. अप्रत्याख्यानी लोभ | ३. प्रत्या ख्यानी लोभ / ४. संज्वलन लोभ ५०३ / १४. नोकषाय १. हास्य । २. शोक | ३. रति / ४. अरति / ५. घृणा । ६. भय ५०४) ७. स्त्रीवेद / ८. पुरुषवेद / ९. नपुंसकवेद ५०७ ५०७ ५०८ ५०३ ५०४ ५०६ ५०७ १५. कषायजय नैतिक प्रगति का आधार १६. पहले प्रकार की वृत्तियों के परिणाम १७. दूसरे प्रकार की वृत्तियों के परिणाम १८. कषाय-जय कैसे ? १९. बौद्धदर्शन और कषाय २०. गीता और कषाय-निरोध २१. आवेग नैतिकता एवं व्यक्तित्व २२. लेश्या सिद्धान्त और नैतिक व्यक्तित्व १. द्रव्य-लेश्या ५०६ / २. भाव-लेश्या ५०७ / २३. लेश्याएँ एवं नैतिक व्यक्तित्व का श्रेणी विभाजन कृष्ण-लेश्या (अशुभतम-मनोभाव) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण ५०८ / नील-लेश्या (अशुभतर-मनोभाव) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण ५०९ / कापोत-लेश्या (अशुभ-मनोवृत्ति) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण ५०९ / तेजो-लेश्या (शुभ-मनोवृत्ति) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण ५१० | पद्म-लेश्या (शुभतर-मनोवृत्ति) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण ५१० | शुक्ल-लेश्या (परमशुभ-मनोवृत्ति) से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण ५१० / २४. लेश्या-सिद्धान्त और बौद्ध-विचारणा २५. लेश्या-सिद्धान्त और गीता २६. लेश्या-सिद्धान्त एवं पाश्चात्य नीतिवेत्ता रास का नैतिक व्यक्तित्व का वर्गीकरण ५१२ ५१४ - ४९६ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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