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________________ १. मनोविज्ञान और आचार-दर्शन का सम्बन्ध जैन आचार-दर्शन और मनोविज्ञान ४५४ / चेतन-जीवन के विविध पक्ष और नैतिकता ५५५ / २. नैतिकता का क्षेत्र संकल्पयुक्त कर्म पाश्चात्य दृष्टिकोण ४५६ | जैन दृष्टिकोण ४४६ / बौद्ध दृष्टिकोण ४५९ / गीता का दृष्टिकोण ४५९ / निष्कर्ष ४५९ / ३. प्राणीय व्यवहार के प्रेरक तत्त्व वासना का उद्भव तथा विकास ४६० | जैन दृष्टिकोण ४६१ / गीता का दृष्टिकोण ४६२ / पाश्चात्य मनोविज्ञान में व्यवहार के मूलभूत प्रेरकों का वर्गीकरण ४६२ / ४. जैन दर्शन में व्यवहार के प्रेरक तत्त्वों (संज्ञाओं) का वर्गीकरण ५. बौद्ध दर्शन के बावन चैत्तसिक धर्म १६ जैन आचारदर्शन का मनोवैज्ञानिक पक्ष ९. (अ) अन्य समान चैत्त सिक / ( ब ) अकुशल चैत्त सिक ४६४ / ( स ) कुशल चैत्त सिक ४६५ / ६. गीता में कर्म - प्रेरकों का वर्गीकरण ७. कामना का उद्भव और विकास ८. 'इन्द्रिय' शब्द का अर्थ जैन दृष्टिकोण ४६६ / बोद्ध दृष्टिकोण ४६७ / गीता का दृष्टिकोण ४६७ / निष्कर्ष ४६८ / (अ) जैन दृष्टिकोण | (ब) बौद्ध दृष्टिकोण / ( स ) गीता का दृष्टिकोण ४६८ / जैन दर्शन में इन्द्रिय-स्वरूप जैन दर्शन में इन्द्रियों के विषय ४६९ । जैन दर्शन में इन्द्रिय निरोध ४७१ / १०. बौद्ध दर्शन में इन्द्रिय-निरोध ११. गीता में इन्द्रिय-निरोध १२. क्या इन्द्रिय- दमन सम्भव है ? जैनदर्शन और इन्द्रिय-दमन ४७४ / बौद्ध दर्शन और इन्द्रियदमन ४७५ | गीता और इन्द्रिय-दमन ४७५ / Jain Education International - ४५१ - - For Private & Personal Use Only - ४५३ ४५६ ४६० ४६३ ४६३ ४६५ ४६५ ४६८ ४६९ ४७२ ४७३ ४७४ www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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