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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
अन्तर प्रतीत होता है, वह शब्दों का है, मूलात्मा का नहीं। जैन-दर्शन में निर्जरा के साधन रूप जिस तप का विधान है, उसमें ज्ञान और ध्यान दोनों ही समाहित हैं। तीनों आचार-दर्शन साधक से यह अपेक्षा करते हैं कि वह संयम (संवर) के द्वारा नवीन कर्मों के बन्धन को रोककर तथा ज्ञान, ध्यान और तपस्या के द्वारा पुरातन कर्मों का क्षय कर परमश्रेय को प्राप्त करे।
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