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________________ कर्म-बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया ३६७ १. ज्ञानावरणीय कर्म जिस प्रकार बादल सूर्य के प्रकाश को ढंक देते हैं, उसी प्रकार जो कर्मवर्गणाएँ आत्मा की ज्ञानशक्ति को ढक देती हैं और सहज ज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनती हैं, वे ज्ञानावरणीय कर्म कही जाती हैं । ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धन के कारण-जिन कारणों से ज्ञानावरणीय कर्म के परमाणु आत्मा से संयोजित होकर ज्ञान-शक्ति को कुंठित करते हैं, वे छः हैं। १. प्रदोष-ज्ञानी का अवर्णवाद (निन्दा) करना एवं उसके अवगुण निकालना । २. निह्नव-ज्ञानी का उपकार स्वीकार न करना अथवा किसी विषय को जानते हुए भी उसका अपलाप करना। ३. अन्तराय-ज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनना, ज्ञानी एवं ज्ञान के साधन पुस्तकादि को नष्ट करना। ४. मात्सर्यविद्वानों के प्रति द्वेष-बुद्धि रखना, ज्ञान के साधन पुस्तक आदि में अरुचि रखना। ५. असादना-ज्ञान एवं ज्ञानी पुरुषों के कथनों को स्वीकार नहीं करना, उनकी समुचित विनय नहीं करना और ६. उपघात-विद्वानों के साथ मिथ्याग्रह युक्त विसंवाद करना अथवा स्वार्थवश सत्य को असत्य सिद्ध करने का प्रयत्न करना। उपर्युक्त छः प्रकार का अनैतिक आचरण व्यक्ति की ज्ञानशक्ति के कुंठित होने का कारण है।' ज्ञानावरणीय कर्म का विपाक-विपाक की दृष्टि से ज्ञानावरणीय कर्म के कारण पाँच रूपों में आत्मा की ज्ञान-शक्ति का आवरण होता है १. मतिज्ञानावरण-ऐन्द्रिक एवं मानसिक ज्ञान-क्षमता का अभाव, २. श्रतिज्ञानावरण--बौद्धिक अथवा आगमज्ञान की अनुपलब्धि, ३. अवधि ज्ञानावरण-अतीन्द्रिय ज्ञान-क्षमता का अभाव, ४. मनःपर्याय ज्ञानावरणदूसरे की मानसिक अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्ति कर लेने की शक्ति का अभाव, ५. केवल ज्ञानावरण---पूर्णज्ञान प्राप्त करने की क्षमता का अभाव ।। __ कहीं-कहीं विपाक की दृष्टि से इनके १० भेद बताये गये हैं । १. सुनने की शक्ति का अभाव, २. सुनने से प्राप्त होनेवाले ज्ञान की अनुपलब्धि, ३. दृष्टि शक्ति का अभाव, ४. दृश्यज्ञान की अनुपलब्धि, ५. गंधग्रहण करने की शक्ति का अभाव, ६. गन्ध सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि, ७. स्वाद ग्रहण करने की शक्ति का अभाव, ८. स्वाद सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि, ९. स्पर्श-क्षमता का अभाव और १०. स्पर्श सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि ।' - ३. नवपदार्थ ज्ञानसार, पृ० २३६. १. (अ) कर्मग्रन्थ, १।५४. (ब) तत्त्वार्थसूत्र, ६।११. २. तत्त्वार्थसूत्र, ८७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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