SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा का स्वरूप और नैतिकता २०५ २०६ २०७ W २१४ २१८ २२० १. नैतिकता और आत्मा २. आत्मा के प्रत्यय की आवश्यकता ३. आत्मा का अस्तित्व ४. आत्मा एक मौलिक तत्त्व आक्षेप एवं निराकरण २१० / ५. आत्मा और शरीर का सम्बन्ध (अ) जैन दृष्टिकोण २१३ ) ( ब ) बौद्ध दृष्टिकोण २१३ / (स) गीता का दृष्टिकोण २१३ / ६. आत्मा के लक्षण (अ) ज्ञानोपयोग २१५ / (ब) दर्शनोपयोग २१७ / (स) आत्म निर्णय की शक्ति (वीर्य) २१७ / आनन्द २१८/ ७. आत्मा परिणामी है अपरिणामी आत्मवाद की नैतिक समीक्षा २१९/ ८. आत्मा कर्ता है एकान्त कर्तृत्ववाद के दोष २२१ / आत्मा-कर्तृत्व के सम्बन्ध में कुन्दकुन्द के विचार २२२ / एकान्त अकर्तृत्ववाद के दोष २२३ / निष्कर्ष २२३ / बौद्ध दृष्टिकोण की समीक्षा २२३ / गीता का दृष्टिकोण २२४ / ९. आत्मा भोक्ता है १०. आत्मा स्वदेह परिणाम है आत्मा के विभुत्व की नैतिक समीक्षा २२६ / ११. आत्माएं अनेक है एकात्मवाद की नैतिक समीक्षा २२६ / अनेकात्मवाद की नैतिक कठिनाई २२७ / जैन दर्शन का निष्कर्ष २२७ / बौद्ध दृष्टिकोण २२८ / गीता का दृष्टिकोण २२९ / १२. आत्मा के भेद विवेक-क्षमता के आधार पर आत्मा के भेद २३० | जैविक आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण २३१ / गतियों के आधार पर जीवों का वर्गीकरण २३२ / २२५ २२५ २२६ २३० - २०५ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy