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प्रत्याख्यानाष्टकम् द्रव्यतो भावतश्चैव प्रत्याख्यानं द्विधा मतम् । अपेक्षादिकृतं ह्याद्यमतोऽन्यच्चरमं मतम् ॥ १ ॥
प्रत्याख्यान के दो प्रकार माने गये हैं - १. द्रव्य-प्रत्याख्यान और २. भाव-प्रत्याख्यान। अपेक्षादि अर्थात् ऐहिक कामनादि से सहित होने से प्रथम द्रव्य-प्रत्याख्यान है तथा अपेक्षादि से रहित होने से अन्तिम भाव-प्रत्याख्यान कहा गया है ॥ १ ॥
अपेक्षा चाविधिश्चैवापरिणामस्तथैव च । प्रत्याख्यानस्य विघ्नास्तु वीर्याभावस्तथापरः ॥ २ ॥
कामना, अविधि अर्थात् विधिपूर्वक प्रत्याख्यान न ग्रहण करना, अपरिणाम अर्थात् प्रत्याख्यान में श्रद्धा का अभाव और वीर्याभाव अर्थात् प्रयत्न का अभाव - ये भाव प्रत्याख्यान के विघ्न हैं ।। २ ।।
लब्ध्याद्यपेक्षया ह्येतदभव्यानामपि क्वचित् । श्रूयते न तत्किञ्चिदित्यपेक्षाऽत्र निन्दिता ॥ ३ ॥
भोजन, यश, पूजा आदि की उपलब्धि की कामना से युक्त प्रत्याख्यान अभव्यों में भी कभी-कभी सुना जाता है किन्तु वह ( सम्यक् ) नहीं है, क्योंकि प्रत्याख्यान में कुछ भी अपेक्षा रखना निन्द्य है ।। ३ ।।
यथैवाविधिना लोके न विद्याग्रहणादि यत् । विपर्ययफलत्वेन तथेदमपि भाव्यताम् ॥ ४ ॥
जिस प्रकार लोक में अविधिपूर्वक अर्थात् सम्यगनुष्ठान के बिना जो विद्या अर्थात् मन्त्र-तन्त्र आदि का ग्रहण है, वह विपरीत फल देने के कारण
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