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________________ पूजाष्टकम् अष्टपुष्पी समाख्याता स्वर्गमोक्षप्रसाधनी । अशुद्धतरभेदेन द्विधा तत्त्वार्थदर्शिभिः ॥१॥ अष्ट प्रकारी पूजा स्वर्ग और मोक्ष की साधनभूत है। तत्त्व-ज्ञानियों द्वारा इसे क्रमश: अशुद्ध (द्रव्य ) और उससे इतर अर्थात् शुद्ध ( भाव ) - दो प्रकार का कहा गया है ।। १ ।। शुद्धागमैर्यथालाभं प्रत्यग्रैः शुचिभाजनैः । स्तोकैर्वा बहुभिर्वाऽपि पुष्पैर्जात्यादिसम्भवैः ॥ २ ॥ अष्टापायविनिर्मुक्ततदुत्थगुणभूतये । दीयते देवदेवाय या साऽशुद्धत्युदाहृता ॥ ३ ॥ सम्यक् रूप से न्यून या अधिक जितने प्राप्त हो सकें उतने नूतन ( अम्लान ) तथा पवित्र पात्र में रखे हुए मालती आदि पुष्पों द्वारा आठ अपाय अर्थात् कर्मों से मुक्त ( अतएव ) अनन्त गुणों से युक्त देवाधिदेव की जाने वाली पूजा अशुद्ध पूजा कही गई है। ( अष्ट प्रकारी द्रव्यपूजा किञ्चित् हिंसा दोष से युक्त होने के कारण अशुद्ध कही गई है ॥ २-३ ॥ सङ्कीर्णषा स्वरूपेण द्रव्याद्भावप्रसक्तितः । पुण्यबन्धनिमित्तत्वाद् विज्ञेया सर्वसाधनी ॥४॥ स्वाभाविक रूप से पाप-मिश्रित होने से अशुद्ध कही गई इस अष्ट प्रकारी द्रव्य-पूजा ( पुष्पादि द्वारा की गई पूजा ) को शुभ-भाव की उत्पत्ति और पुण्य-बन्ध का निमित्त होने से स्वर्ग का साधनरूप समझना चाहिए |॥ ४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001665
Book TitleAshtakprakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Religion, worship, & Principle
File Size8 MB
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