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________________ 4 अष्टकप्रकरणम् एवं सवृत्तयुक्तेन येन शास्त्रमुदाहृतम् । शिववर्त्म परं ज्योतिस्त्रिकोटीदोषवर्जितम् ॥ ५ ॥ इस प्रकार सदाचरण युक्त होकर जिस ( देव ) के द्वारा उत्तम मोक्षमार्ग का प्रकाशक शास्त्र निर्मित किया गया है जो परम ज्योतिस्वरूप एवं राग-द्वेष तथा मोह रूपी तीन प्रकार के दोषों से रहित है, वह महादेव कहा जाता है ॥ ५ ॥ यस्य चाराधनोपायः सदाज्ञाभ्यासएव हि । विधानेन यथाशक्ति निश्चित रूप से जिसकी आराधना का उपाय उसकी आज्ञा का परिपालन ही है। यथाशक्ति नियमपूर्वक उस आज्ञा का पालन करने से वह जिनाज्ञा ( आराधना ) अवश्य ही फल प्रदान करने वाली है ॥ ६ ॥ नियमात्सफलप्रदः ।। ६ ।। सुवैद्यवचनाद्यद्वद्व्याधेर्भवति संक्षयः । तद्वदेव हि तद्वाक्याद् ध्रुवः संसारसंक्षयः ॥ ७ 11 जिस प्रकार कुशल वैद्य के निर्देशों के परिपालन से रोग का नाश हो जाता है, उसी प्रकार उस महादेव के वचन के परिपालन से निश्चित रूप से संसार ( भव- परम्परा ) का क्षय होता है ।। ७ ।। एवम्भूताय शान्ताय कृतकृत्याय धीमते । महादेवाय सततं सम्यग्भक्त्या नमोनमः ॥ ८ ॥ Jain Education International इस प्रकार के स्वरूप वाले, शान्त, कृतकृत्य, धीमान् महादेव को सम्यक् भक्तिपूर्वक सदैव वन्दन हो ॥ ८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001665
Book TitleAshtakprakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Religion, worship, & Principle
File Size8 MB
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