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अष्टकप्रकरणम्
एवं सवृत्तयुक्तेन येन शास्त्रमुदाहृतम् । शिववर्त्म परं ज्योतिस्त्रिकोटीदोषवर्जितम् ॥ ५ ॥
इस प्रकार सदाचरण युक्त होकर जिस ( देव ) के द्वारा उत्तम मोक्षमार्ग का प्रकाशक शास्त्र निर्मित किया गया है जो परम ज्योतिस्वरूप एवं राग-द्वेष तथा मोह रूपी तीन प्रकार के दोषों से रहित है, वह महादेव कहा जाता है ॥ ५ ॥
यस्य चाराधनोपायः सदाज्ञाभ्यासएव हि । विधानेन
यथाशक्ति
निश्चित रूप से जिसकी आराधना का उपाय उसकी आज्ञा का परिपालन ही है। यथाशक्ति नियमपूर्वक उस आज्ञा का पालन करने से वह जिनाज्ञा ( आराधना ) अवश्य ही फल प्रदान करने वाली है ॥ ६ ॥
नियमात्सफलप्रदः ।। ६ ।।
सुवैद्यवचनाद्यद्वद्व्याधेर्भवति
संक्षयः ।
तद्वदेव हि तद्वाक्याद् ध्रुवः संसारसंक्षयः ॥ ७ 11
जिस प्रकार कुशल वैद्य के निर्देशों के परिपालन से रोग का नाश
हो जाता है, उसी प्रकार उस महादेव के वचन के परिपालन से निश्चित रूप से संसार ( भव- परम्परा ) का क्षय होता है ।। ७ ।।
एवम्भूताय शान्ताय कृतकृत्याय धीमते ।
महादेवाय सततं सम्यग्भक्त्या नमोनमः ॥ ८ ॥
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इस प्रकार के स्वरूप वाले, शान्त, कृतकृत्य, धीमान् महादेव को सम्यक् भक्तिपूर्वक सदैव वन्दन हो ॥ ८ ॥
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