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१
महादेवाष्टकम्
यस्य
संक्लेशजननोरागो नास्त्येव सर्वथा ।
त्रिलोकख्यातमहिमा
न च द्वेषोऽपि सत्त्वेषु शमेन्धनदवानलः ॥ १ ॥ न च मोहोऽपिसज्ज्ञानच्छादनोऽशुद्धवृत्तकृत् । महादेवः स उच्यते ।। २ ॥ जिसमें संक्लेश को उत्पन्न करने वाला राग पूर्णरूप से नहीं है और जिसमें प्राणियों के प्रति ऐसा द्वेष भी नहीं है, जो शमरूपी ईंधन को भस्मीभूत करने वाला दावाग्निरूप है और न ही सद्- ज्ञान का आच्छादक एवं आचरण को दूषित करने वाला मोह ही है, वह तीनों लोक में प्रसिद्ध महिमा वाला महादेव कहा जाता है ॥ १-२ ॥
यो वीतरागः सर्वज्ञो यः शाश्वतसुखेश्वरः । क्लिष्टकर्मकलातीतः सर्वथा निष्कलस्तथा ॥३॥
यः पूज्यः सर्वदेवानां यो ध्येयः सर्वयोगिनाम् । यः स्रष्टा सर्वनीतीनां महादेवः स उच्यते ॥ ४ ॥
जो वीतराग है, सर्वज्ञ है, शाश्वत सुख का स्वामी है, दुःख के कारण (रूप ) कर्मांशों से सर्वथा मुक्त है तथा जो सर्वथा मलरहित है, जो समस्त देवों का पूज्य है, जो समस्त योगियों का ध्येय है और समस्त नीतियों का सर्जक है, वह महादेव कहा जाता है ।। ३-४ ।।
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