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१५ एकान्तानित्यपक्षखण्डनाष्टकम् क्षणिकज्ञानसन्तानरूपेऽप्यात्मन्यसंशयम् । हिंसादयो न तत्त्वेन स्वसिद्धान्तविरोधतः ॥ १ ॥
क्षणिक ज्ञानसन्तानरूप आत्मा में भी निस्सन्देह वास्तविक रूप से हिंसादि घटित नहीं होते क्योंकि आत्मा में हिंसादि घटित मानने पर बौद्धों का अपने सिद्धान्त से विरोध होता है ॥ १ ॥
नाशहेतोरयोगेन क्षणिकत्वस्य संस्थितिः । नाशस्य चान्यतोऽभावे भवेद्धिंसाप्यहेतुका ॥ २ ॥
क्षणिकवाद की व्यवस्था में विनाशक हेतु के अभाव में ही पदार्थ स्वत: नष्ट होते हैं और यदि किसी वस्तु का विनाश अन्य अर्थात् कारण के अभाव में माना जाय तो हिंसा भी अहेतुक सिद्ध होगी अर्थात् हिंसा का भी कोई निमित्त नहीं होगा ॥ २ ॥
ततश्चास्याः सदा सत्ता कदाचिनैववा भवेत् । कादाचित्कं हि भवनं कारणोपनिबन्धनम् ॥ ३ ॥
हिंसा को निर्हेतुक मानने पर दोष यह होगा कि या तो इसकी सदैव सत्ता होगी अर्थात् हर क्षण हिंसा होगी अथवा कभी नहीं ही होगा। दूसरे शब्दों में उसका सर्वथा अभाव होगा, क्योंकि कभी-कभी हिंसा का प्रादुर्भाव मानने पर इसका हेतु मानना पड़ेगा ॥ ३ ॥
न च सन्तानभेदस्य जनको हिंसको भवेत् । सांवृतत्वान जन्यत्वं यस्मादस्योपपद्यते ॥ ४ ॥ सन्तान अर्थात् क्षणप्रवाहरूप विशेष का हिंसक उसका जनक नहीं
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